हमारा वास्तविक अस्तित्व(मूल स्वरूप) क्या है?

धूल की कहानी

धूल ने एक बार सोचा था कि अगर वह कभी उड़ सकी, तो वह कभी धरती पर नहीं लौटेगी। ऐसा करने के अपने प्रयास में, उसने दिन रात एक कर दिया।

उसने परम शक्ति से प्रार्थना की, ध्यान किया, जप-तप और वह सब किया जो वह अपनी इच्छा पूरी करने के लिए कर सकती थी।

अन्तोगत्वा परम शक्ति ने उसकी सुन ली। जल्द ही उसकी इच्छा पूरी हो गई। इतनी तेज हवा चली कि धूल हवा में उड़ने लगी।

हवा के वेग से धूल पेड़ों पर, पहाड़ों पर और आकाश में चारो ओर उड़ने लगी।

धूल ने गर्व से अपने आप को दुनिया के शीर्ष पर महसूस किया। उसे लगा कि उसने अपना उद्देश्य पा लिया है। कुछ देर तक यह सब चलता रहा।

लेकिन कुछ समय बाद वह थक गई थी। अब वह वापस आना चाहती थी, वह आराम करना चाहती थी। सभी तरफ की यात्रा करने की उसकी इच्छा पूरी हो गई थी।

बस! अब वह फिर से वही धूल बनना चाहती थी। धूल को अब बोध प्राप्त हो गया था। अब उसका आंतरिक स्व जागृत हो गया था! और उसने अपने रूदन भरे दिल से सर्वशक्तिमान को फिर से पुकारा। वह तब तक भरे हॄदय से पुकारती रही, जब तक उसकी प्रार्थना सर्वशक्तिमान तक पहुँच नहीं गई।

उसकी पुकार सुन ली गई। धूल को अपने मूल स्वरूप में पृथ्वी पर वापस भेज दिया गया, जहाँ वह पहले की तरह ही आरामदायक स्थिति में थी।

अब उसे ऐसा लग रहा था जैसे वह हमेशा से यहीं थी। हमेशा पूरी तरह से अपने आप में पूर्ण! आकाश और उससे आगे की वह सारी यात्रा, शायद उसे अपने मूल स्वरूप का अनुभव कराने के लिए कराई गई थी और फिर वह आसमान की ओर देख कर मुस्कुराई…..उस अदभुत अनुभव के लिए।

उसका सारा ज्ञान धरा रह गया था। उसकी सारी इच्छाएँ मर चुकी थीं। वह एक बार फिर से, ‘शून्य’ की अवस्था में थी। लेकिन उस शून्यता के भीतर एक अद्भुत कृपा थी, ‘अपने आप को महसूस करने की…..’ ।

और अंत में, वह जो थी, उसमें समा गई। अब कोई तलाश बाकी नहीं थी, कोई इच्छा बाकी नहीं रही! जैसी है, वैसी में ही संतुष्ट……

और फिर हवाऐं मुस्कुराईं, बीज जमीन में समा गए, सूरज चमक उठा…. बारिश हुई और पुष्प पल्लवित हो गए। धूल अब अपने मूल में समा चुकी थी, उसका अस्तित्व अब सर्व में विलय हो गया था……।

जब हम खुद से प्यार करते हैं तो हम अपने अस्तित्व को स्वीकार कर रहे होते हैं और इस तरह हम अपने अस्तित्व में लीन हो जाते हैं। जब हम स्वयं को अस्वीकार करते हैं, तो हम अपने ही अस्तित्व को अस्वीकार कर रहे होते हैं।

जब हम अपनी सभी इच्छाओं को छोड़ कर जैसा हमें होना चाहिए, वैसा बनना चाहते हैं, हमारे मूल स्वरूप में….तभी हम वास्तव में अपने अस्तित्व को स्वीकार करते हैं।

जीसस ने कहा है: “जो खुद को खो देते हैं, वे खुद को पा लेते हैं…जैसे एक बूंद का सागर में विलय हो जाना।”

                       

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HFN Story Team