गंगा जल का औषधीय गुण | Importance of GangaJal

आरोग्य की दृष्टि से गंगाजल का उपयोग का जो महत्व (Gangajal benefits) है उसे देखकर आधुनिक विज्ञान के वैज्ञानिक एवं चिकित्सक भी आश्चर्यचकित रहते हैं।

गंगा जी का विश्लेषण करने पर वैज्ञानिकों को यह पता चलता है कि गंगा जल | Ganga water में तांबा, स्वर्ण आदि धातुएं एवं अनेक बहुमूल्य क्षारों की ऐसी संतुलित मात्रा मिलती है जिसका सेवन एक प्रकार से औषधि का काम करता है।

गंगा नदी के पानी की क्या विशेषता है?
गंगा जल | Ganga water की यह औषधि अच्छे स्वास्थ्य को अधिक बढ़ाने में सहायक होती है। गिरे हुए स्वास्थ्य को गिरने से रोकती है और बीमार व्यक्ति को निरोग बनाने में बहुमूल्य औषधि का काम करता है।

फायदा है?

गंगा जल पीने से क्या गंगाजल से नहाने से क्या होता है?

अनेक रोगी जो वर्षों तक बहुमूल्य औषधि उपचार करने पर भी रोगमुक्त न हो सके केवल मात्र गंगा जल के सेवन से रोग मुक्त होते देखे गए हैं।

प्राचीन काल के आयुर्वेद ज्ञाता कोढी रोगियों को गंगा के किनारे रहने और निरंतर गंगा जल का सेवन करते रहने की सलाह देते थे और उसका परिणाम भी आशाजनक और आश्चर्यजनक होता था। आज शहरों की गंदगी तथा मल-मूत्र पड़ते रहने से गंगा की वह विशेषता नहीं रही और रोगियों को उतना लाभ नहीं होता फिर भी प्राचीन परिपाटी के अनुसार आज भी भारत के अधिकतर कोढ़ रोगी गंगा किनारे निवास करते देखे जा सकते हैं।

गंगा के पानी में कीड़े क्यों नहीं पडती?
गंगा जल की एक सबसे बड़ी विशिष्टता यह पाई जाती है कि चिरकाल/अनगिनत वर्षों तक इसे किसी शीशी या बर्तन में रखने पर भी यह खराब नहीं होता। यह गुण संसार के किसी अन्य सरोवर या नदी के जल में नहीं पाया जाता है।

गंगा जल | Ganga water के खराब न होने का कारण यह है कि इसमें विकृति उत्पन्न करने वाले दूषित कीटाणुओं को मार डालने का गुण है। डाक्टरों की टीम ने एक बार परीक्षण किया, जिसमें हैजे के कीटाणु भरी बोतल में गंगा जल डाला गया और उसके परिणामों की जांच। की गई।

डाक्टरों को आशा थी कि विषैले कीटाणुओं से गंगा जल भी वैसा ही विषैला हो जाएगा लेकिन इसके विपरीत परिणाम भिन्न निकला, गंगा जल डालने के बाद हैजे के कीटाणु नष्ट हो गए पर गंगा जल | Ganga water दूषित नहीं हुआ।

सोच का विषय है कि गंगा जल में यह शुद्धि विशिष्टता न होती तो प्रतिदिन लाखों लोगों का मल-मूत्र जो उसमें पड़ता है उसके कारण उसका जल रोग उत्पन्न करने वाला हो गया होता किंतु ऐसा नहीं हुआ।

गंगा नदी व गंगा जल की पवित्रता तो अभी भी बनी हुई है. पर प्रतिदिन पडने वाली गंदगी को नष्ट करने में उस जल के गुणकारी तत्त्व तो नष्ट होते हैं साथ ही उसकी आरोग्यवर्धक शक्ति भी घटती है।

स्वास्थ्य की दृष्टि में अब वहीं गंगा जल उपयोगी माना जाता है जो हिमालय के भागों में उपलब्ध है। जहां मल-मूत्र का मिश्रण नहीं हो पाता है। संग्रहणी, वायु विकार, श्वास रोग, मिरगी, मूत्र रोग, हृदय रोग, रक्तचाप, वीर्य वयस्क रजविकारों में गंगा जल का विशेष असर देखा जाता है। वैसे लाभ तो गंगा जल सभी रोगों में करता है।

शारीरिक व्याधियों को दूर करने के साथ-साथ मानसिक विकारों को दूर करने में भी गंगा जल
का बहुत बड़ा योगदान है। कहा भी गया है कि औषधि जाहवी तोयं वैद्यो नारायणः हरिः ।। अर्थात आध्यात्मिक रोगों की दवा गंगा जल है और इन रोगों के रोगियों के चिकित्सक नारायण हरि परमात्मा हैं।

/ घर में गंगा जल छिड़कने से क्या होता है?

सूक्ष्म दृष्टि से देखा जाए तो गंगा जल में आरोग्य वृद्धि का विशेष गुण है। उसकी कल-कल ध्वनि कानों को पवित्र करती है। उसके दर्शन से नेत्रों की कुवासनाएं शांत होती हैं, उसकी समीपता से मन के कुविचारों पर अंकुश लगता है। उसके स्नान और पान से अंत: करण की भावनाएं जागृत होती हैं।
फ्रांस के डॉ.डी.हेरेल ने गंगा जल का वैज्ञानिक परीक्षण किया तो उन्होंने पाया कि इस जल में संक्रामक रोगों के कीटाणुओं को मारने की जबरदस्त शक्ति है। आश्चर्यजनक बात तो यह है कि एक गिलास में किसी नदी या कुएं का पानी लें जिसमें कोई कीटाणुनाशक तत्त्व न हो, उसे गंगा जल में मिला दें तो गंगा जल के कृमिनाशक कीटाणुओं की संख्या बढ़ जाती है। जिससे सिद्ध होता है कि गंगा जल | Ganga water में ऐसा कोई विशेष तत्त्व है जो किसी भी मिश्रण वाले जल को अपने समान ही बना लेता है।

यही कारण है कि 1557 मील लंबी गंगा नदी में गोमती नदी,घाघरा नदी, सोन नदी, यमुना नदी, गंडक नदी और हजारों / बड़ी-छोटी नदियां मिलती हैं फिर भी गंगा जल की यह कृमिनाशक क्षमता अक्षुण्ण बनी रही है। यह एक प्रकार का प्राकृतिक चमत्कार ही है।

डॉ. डी. हेरेल ने अपने प्रयोगों से सिद्ध करा है कि गंगा जल में टीबी, अतिसार, संग्रहणी, हैजा के जीवाणुओं को मारने की शक्ति विद्यमान है। गंगा जल के कीटाणुओं की सहायता से ही उन्होंने सुप्रसिद्ध औषधी ‘बैक्टीरियों फैज’ का निर्माण किया और जो कि ऊपर बताई गई सभी बीमारियों के लिए सारे संसार में लाभप्रद सिद्ध हुई।

आयुर्वेद में गंगा जल को
शरीरिक और मानसिक रोगों का निवारण करने वाला और आरोग्य तथा मनोबल बढ़ाने वाला बताया गया है। कहा गया है कि गंगा जल अमृत के तुल्य, बहुगुण युक्त, पवित्र, उत्तम, आयु को बढ़ाने वाला, सर्वरोगनाशाक, बल-वीर्यवर्धक, हृदय को हितकर, दीपन, पाचन, रूचिकारक मीठा, उत्तमपश्य और लघु होता है तथा भीतरी दोषों का नाशक बुद्धिजनक, तीनों दोषी का नाश करने वाला सब जलों में श्रेष्ठ है। गंगा जल

अमेरिका में एक लीटर गंगाजल 250 डालर में क्यों मिलता है ? सर्दी के मौसम में कई बार खांसी हो जाती है। जब डॉक्टर से खांसी ठीक नही हुई
तो किसी ने बताया कि डाक्टर से खांसी ठीक नहीं होती तब गंगाजल पिलाना चाहिए।

गंगाजल तो मरते हुए व्यक्ति के मुंह में डाला जाता है, हमने तो ऐसा सुना है; तो डॉक्टर साहिब बोले- नहीं ! कई रोगों का इलाज भी है। दिन में तीन बार दो-दो चम्मच गंगाजल पिया और तीन दिन में खांसी ठीक हो गई। यह अनुभव है, हम इसे गंगाजल का चमत्कार नहीं मानते, उसके औषधीय गुणों का प्रमाण मानते हैं।

कई इतिहासकार बताते हैं कि सम्राट अकबर स्वयं तो गंगा जल का सेवन करता ही था, मेहमानों को भी गंगा जल पिलाता था । इतिहासकार लिखते हैं कि अंग्रेज जब कलकत्ता से वापस इंग्लैंड जाते थे. तो पीने के लिए जहाज / में गंगा का पानी ले जाते थे, क्योंकि वह सड़ता नहीं था। इसके विपरीत अंग्रेज जो पानी अपने देश से लाते थे वह रास्ते में ही सड़ जाता था।

करीब सवा सौ साल पहले आगरा में तैनात ब्रिटिश डाक्टर एमई हॉकिन ने वैज्ञानिक परीक्षण से सिद्ध किया था कि हैजे का बैक्टीरिया गंगा के पानी में डालने पर कुछ ही देर में मर गया। ये है कि इस समय वैज्ञानिक भी पाते हैं कि गंगा में बैक्टीरिया को मारने की गजब की क्षमता है। लखनऊ के नेशनल बोटैनिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट एनबीआरआई
के निदेशक डॉक्टर चंद्र शेखर नौटियाल ने एक अनुसंधान में प्रमाणित किया है कि गंगा के पानी में बीमारी पैदा करने वाले ई-कोलाई बैक्टीरिया को मारने की क्षमता बरकरार है। डॉ नौटियाल का इस विषय में कहना है कि गंगा जल में यह शक्ति गंगोत्री और हिमालय से आती है।

गंगा जब हिमालय से आती है तो कई तरह की मिट्टी, कई तरह के खनिज, कई तरह की जड़ी बूटियों से मिलती मिलाती है। कुल मिलाकर कुछ ऐसा मिश्रण बनता है- जिसे हम अभी तक नहीं समझ पाए हैं। डॉक्टर नौटियाल ने परीक्षण के लिए तीन तरह का गंगा जल लिया था। उन्होंने तीनों तरह के गंगा जल में ई-कोलाई बैक्टीरिया डाला। नौटियाल ने पाया कि ताजे गंगा पानी में बैक्टीरिया तीन दिन जीवित रहा, आठ दिन पुराने पानी में एक हफ्ते और सोलह साल पुराने पानी में 15 दिन। यानी तीनों तरह के गंगा जल में ई-कोलाई बैक्टीरिया जीवित नहीं रह पाया।

वैज्ञानिक कहते हैं कि गंगा के पानी में बैक्टीरिया को खाने वाले बैक्टीरियोफाज वायरस होते हैं। ये वायरस बैक्टीरिया की तादाद बढ़ते ही सक्रिय होते हैं और बैक्टीरिया को मारने के बाद फिर छिप जाते हैं। मगर सबसे महत्वपूर्ण सवाल इस बात की पहचान करना है कि गंगा के पानी में रोगाणुओं को मारने की यह अद्भुत क्षमता कहाँ से आती है?

दूसरी ओर एक लंबे अरसे से गंगा पर शोध करने वाले आईआईटी रुड़की में पर्यावरण विज्ञान के रिटायर्ड प्रोफेसर देवेंद्र स्वरुप भार्गव का कहना है कि गंगा को साफ रखने वाला यह तत्व गंगा की तलहटी में ही सब जगह मौजूद है। डाक्टर भार्गव कहते हैं कि गंगा के पानी में वातावरण से आक्सीजन सोखने की अद्भुत क्षमता है। भार्गव का कहना है कि दूसरी नदियों के मुकाबले गंगा में सड़ने वाली गंदगी को हजम करने की क्षमता 15 से 20 गुना ज्यादा है।

गंगा माता इसलिए है कि गंगाजल अमृत है, जब तक अंग्रेज किसी बात को प्रमाणित नहीं करते तब तक भारतीय लोग सत्य नहीं मानते। भारतीय लोग हमारे सनातन ग्रन्थों में लिखी किसी भी बात को तब तक सत्य नहीं मानेंगे जब तक कि कोई विदेशी वैज्ञानिक या विदेशी संस्था उस बात की सत्यता की पुष्टि नहीं कर दे। इसलिए इस आलेख के वैज्ञानिकों के वक्तव्य BBC बीबीसी हिन्दी सेवा से साभार लिये गये हैं…