स्मृतियों में कैसे समझूं,
संग आप रहते हो पापा।
जीवन की परिभाषा में,
हर ओर नजर आते हो पापा।
एकाकीपन क्यों लगता है,
कुछ कुछ लगता खाली सा,
सात रंग के इंद्रधनुष पर,
स्नेह लुटा जाना पापा।
अपनी बगिया की हर डाली,
को देखो आनंदित होकर,
जनम जनम में आप साथ हों,
कसम निभाए जाना पापा।
साया अपना छोड़ यहां ,
आप कहां बैठे हो
जाकर।
सबका संबल बन करके,
आशीष बनाए रखना पापा।
. .. उर्वशी उपाध्याय’प्रेरणा’
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