पश्चिम बंगाल के मौजूदा विधानसभा चुनावों में मुख्यमंत्री और टीएमसी अध्यक्ष ममता बनर्जी के लिए बीजेपी से मुकाबले की खातिर वाम का सहारा जरूरी हो गया है या फिर उन्होंने सोची-समझी रणनीति के तहत वाम समर्थकों से टीएमसी के पक्ष में वोट देने की अपील की है?
यूं तो उनकी पार्टी ने बीती जनवरी में भी लेफ्ट से बीजेपी के खिलाफ टीएमसी को समर्थन देने की अपील की थी. लेकिन अब बुधवार को पार्टी का चुनावी घोषणापत्र जारी करने के बाद उन्होंने एक बार फिर इसे दोहराया है.
ममता का कहना था, “लेफ्ट मौजूदा चुनावों में जीत कर सत्ता में नहीं आ सकता. इसलिए उसके समर्थकों को लेफ्ट फ्रंट का समर्थन कर अपना वोट बर्बाद नहीं करना चाहिए. इसके बजाय उनको बीजेपी को हराने के लिए टीएमसी को वोट देना चाहिए.” ममता की इस अपील के बाद राजनीतिक हलकों में सवाल उठ रहा है कि क्या ममता को बीजेपी की चुनौती कठिन लगने लगी है? क्या इसलिए उन्होंने लेफ्ट समर्थकों से टीएमसी के पक्ष में वोट डालने की अपील की है?
लंबे अरसे तक टीएमसी कवर करने वाले वरिष्ठ पत्रकार पुलकेष घोष ऐसा नहीं मानते. घोष कहते हैं, “लेफ्ट का तालमेल जब तक कांग्रेस के साथ था तब तक तो ठीक था. लेकिन पीरज़ादा अब्बासी की पार्टी इंडियन सेक्युलर फ्रंट (आईएसएफ़) के इस गठजोड़ में शामिल होने की वजह से लेफ्ट समर्थकों का एक गुट नाराज़ है. ऐसे लोगों का सवाल है कि अगर हमें सांप्रदायिक पार्टी की ही सहारा लेना है तो फिर आईएसएफ क्यों, दूसरी पार्टी क्यों नहीं?” वे बताते हैं कि इस नाराज़गी को ध्यान में रखते हुए ही ममता ने ऐसे वोटरों से बीजेपी की बजाय टीएमसी को वोट देने की अपील की है ताकि बीजेपी को हराया जा सके.













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