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चैरिटी’ का एक निश्चित वर्ग अन्तर्य होता है

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‘चैरिटी’ का एक निश्चित वर्ग अन्तर्य होता है। चैरिटी की जगह एक ऐसे ही समाज में हो सकती है, जहाँ व्यापक सामाजिक विषमता मौजूद हो। कि जहाँ एक तरफ दे सकने में समर्थ मुट्ठी भर धन कुबेर हों और दूसरी तरफ लेने को विवश व्यापक जन समुदाय हो। जिसमें कुछ के पास सबकुछ हो और शेष के पास कुछ भी न!

चैरिटी का मूल तर्क कि ‘हमें एक दूसरे के लिए सोचना चाहिए’ दअरसल एक ऐसे समाज का दोगला, पाखंडी, अनैतिक कुतर्क है जहाँ हर कोई सिर्फ अपने लिए जीता, सोचता है और जहाँ यह जरूरत सतत रूप से बनी रहती है कि सम्पन्न शासक, विपन्न शासितों के बारे भी सोचें!

चैरिटी अमीर से गरीब की तरफ, सम्पन्न से विपन्न की तरफ यानि एकतरफा अजस्व प्रवाह है, जो समाज के बहुसंख्यक निचले संस्तरों को निष्क्रिय याचक की भूमिका में डालता है और ऊपरी सम्पन्न संस्तरों को दानवीर की सक्रीय भूमिका देता है।

चैरिटी की इस दुनिया में गरीब, साधनहीन मेहनतकश वर्ग की भूमिका ‘शून्य’ हो जाती है। चैरिटी के नाम पर सारी अपीलें, सारे आह्वान सिर्फ और सिर्फ ऊपरी संस्तरों यानि दान-दाताओं को ही संबोधित होते हैं। इन ऊपरी संस्तरों को संकटमोचको की भूमिका में रखकर ‘चैरिटी’ यह भ्रम पैदा करती है कि वे ही हमारी दुनिया के जीवनरक्षक और तारणहार हैं! चैरिटी इस बात पर पर्दा डाल देती है कि इस आपदा के लिए, हमारी तमाम पराजयों के लिए यह पूंजीपति और इनकी सत्ता ही मूलरूप से जिम्मेदार है।

चैरिटी मेहनतकशवर्ग को यह देखने से भी रोक देती है कि सारी संपत्ति/सम्पदा अंततः और प्रथमतया भी, मेहनतकशवर्ग के श्रम का ही संचित रूप है, जिसे धन-पशुओं ने दशकों-दशक लूटकर अपनी तिजोरियों में भरा है। इस तरह चैरिटी संकट के मूल-स्रोत पूँजीवाद को ही हमारे सामने एकमात्र समाधान और विकल्प के तौर पर पेश कर देती है। ऐसा करके वह पीड़ित, उत्पीड़ित जनता को स्त्रोत पूँजीवाद के खिलाफ आक्रमण खोलने से रोक देती है और उसे दान लेने वाले निष्क्रिय भिखारियों में बदलते हुए उसकी संभावित क्रांतिकारी पहलकदमी को छीन लेती है।

मेहनतकशवर्ग के शोषण से जमा की गई अथाह दौलत में से सम्पन्न संस्तर चैरिटी के नाम पर कुछ टुकड़े जनता की तरफ उछालते हैं और यह भ्रम पैदा करते हैं कि कॉरपोरेट सर्वहारा के वर्ग शत्रु नहीं बल्कि मित्र और संकटमोचक हैं।

कॉरपोरेट मीडिया चैरिटी कर रहे धनकुबेरों को देवत्व देते, कॉरपोरेट चैरिटी को महिमामंडित करते, उसे संकट से निकलने के एकमात्र रास्ते के तौर पर प्रस्तुत करते और अंततः इस बात पर पर्दा डालते हुए कि संकट का स्रोत पूँजीवाद ही है, सर्वहारा की वर्ग चेतना को कुंद करता है।

वहीं चैरिटी को आगे करके और सर्वहारा को उनके रहम पर छोड़ एकतरफ बुर्जुआ राज्य अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेता है तो दूसरी तरफ सर्वहारा पर कड़े पुलिस नियंत्रण थोपता है। संकट वर्गों के बीच की खाई को पूरी तरह से उजागर कर देता है। शासक वर्ग इस ढंकने के लिए, और अधिक झूठ और प्रपंच का सहारा लेता है। कॉरपोरेट मीडिया और चैरिटी इस समय ऐसा कोहरा पैदा करने का प्रयास करते हैं जिससे वर्ग विरोधों को ढँकाया और छिपाया जा सके और संकट के बीच वर्ग संघर्ष को जन्म लेने, पनपने और तीखा होने से रोका जा सके।

‘चैरिटी’ भूख और बदलहाली में घिरे सर्वहारा की ओर टुकड़े फेकती है और कॉरपोरेट मीडिया उसे दिनरात महिमामंडित करता है। शासक एलीट का यह चैरिटी अभियान जितना ही तीखा होता है, सर्वहारा संघर्षों की संभावना उतनी ही कम हो जाती है

Workers’ Socialist Party

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