
महान साहित्यकार और छायावाद के स्तंभ पंडित सूर्यकान्त त्रिपाठी “निराला” की स्मृतियों की उपेक्षा पर पूरा प्रयागराज आहत है। 2012 के कुम्भ से पूर्व, उनकी मूर्ति दारागंज के ऐतिहासिक चौराहे पर स्थापित थी, जो अब उपेक्षित स्थान पर गंगा भवन के सामने रखी गई है। अंतरराष्ट्रीय मुच्छनृत्य कलाकार राजेन्द्र कुमार तिवारी “दुकान जी” ने प्रशासन और कुम्भ मेला प्राधिकरण से मूर्ति को उचित स्थान पर स्थापित करने का आग्रह किया है। इस पहल का समर्थन साहित्यकार डॉ. शम्भूनाथ त्रिपाठी ‘अंशुल’, भारतीय सांस्कृतिक परिषद् के राष्ट्रीय अध्यक्ष दुर्गेश दुबे, और महानगर अध्यक्ष सतीश कुमार गुप्त ने किया है। इन सभी ने निराला जी की मूर्ति को सम्मानजनक स्थान देने और दारागंज को “निराला नगर” नाम से गजट करने की मांग की है।
छायावाद के स्तंभ प्रखर “निराला” की ढहती स्मृतियाँ
कह जाते हो,
यहाँ कभी मत आना
उत्पीड़न का राज्य दुःख ही दुःख है
यह है सदा उठाना
क्रूर यहाँ पर कहलायें हैं शूर
और हृदय का शूर सदा ही दुर्बल क्रूर…
उक्त हृदयस्पर्शी काव्य पंक्तियाँ छायावाद काव्य जगत के सशक्त स्तंभ साहित्य मनीषी पंडित सूर्यकान्त त्रिपाठी “निराला” की प्रसिद्ध कविता “दीन” से उद्धृत् हैं जो कहीं न कहीं अपनी व्यथा का पूर्वाभास करा रहीं हैं। मेरा आशय छायावाद के प्रमुख महान काव्यजगत के सशक्त हस्ताक्षरों में शिरोमणि “निराला” जिन्हें माँ सरस्वती का वरद्पुत्र भी कहा जाता है , प्रयागराज को यदि धर्म, कर्म और ज्ञान की त्रिवेणी से परिभाषित किया जाता है तो मोक्ष दायिनी माँ गंगा, माँ यमुना के साथ माँ सरस्वती का स्थान महत्वपूर्ण है। यही माँ सरस्वती के वरद्पुत्र “निराला” प्रयाग को काव्य और साहित्य के उच्चतम शिखर पर सुशोभित करता है।
ऐसे प्रयागराज के कीर्तिशेष गौरव की उपेक्षा से पूरा प्रयागराज का जनमानस आहत है। 2012 के कुम्भ से पूर्व महाप्राण निराला की मूर्ति सुन्दर मंच एवं सुशोभित छाया के साथ दारागंज के ऐतिहासिक चौराहे पर विराजमान थी, जो प्रयाग के मुकुट की तरह सुशोभित थी, किन्तु व्यवस्था के कुचक्र के फलस्वरूप यह अद्वितीय महानुभाव की प्रतिमा को माँ गंगा के किनारे गंगा भवन के सामने ऐसे स्थान पर लगा दी गयी जो सर्वथा के लिये उपेक्षित हो गयी।
पश्चिम बंगाल के महिसागर, जिला मेदनीपुर में 21 फरवरी 1896 “बसंत पंचमी” के दिन महाप्राण का जन्म हुआ। आपने आर्मी ऑफिसर के रुप में भी राष्ट्र को अपनी सेवायें दीं। देश में अनेकों महत्वपूर्ण पत्र-पत्रिकाओं में काव्य लेखन के साथ-साथ सम्पादक की भी महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। स्वच्छन्द चिन्तन के धनी, दीन दुःखियों के मददगार , परमार्थ हृदय श्रेष्ठ महाप्राण निराला ने प्रयागराज ( इलाहाबाद ) को अपनी काव्य साधना हेतु उपयुक्त समझकर दारागंज की गलियों को पावन किया। रश्मिराथि, हुनकर, परशुराम की प्रतिक्षा, समर शेष है, बापू, कुरुक्षेत्र आदि जैसी कालजयी रचनाओं के लिये आपको साहित्य अकादमी पुरस्कार ( 1959 ), पद्मभूषण ( 1959 ) , भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार ( 1972 ) से सम्मानित किया गया। आप द्वारा रचित माँ सरस्वती की वन्दना “वर दे , वीणा वादिनी वर दे।” आराधना का मुख्य गीत रहा है। राम की शक्ति पूजा जैसी आध्यात्मिक काव्य रचना अविस्मरणीय है। ऐसे अमर व्यक्तित्व की प्रतिमा को उचित सम्मान न देने से अन्तरराष्ट्रीय मुच्छनृत्य कलाकार राजेन्द्र कुमार तिवारी”दुकान जी ने जिला प्रशासन , कुम्भ मेला प्राधिकरण, प्रयागराज विकास प्राधिकरण से प्रतिमा को उचित स्थान पर स्थापित कर ऐसे राष्ट्र कवि को राष्ट्रीय सम्मान प्रदान करने हेतु विनम्र अनुरोध किया है। दुकान जी ने साथ – साथ साहित्य, कला, काव्य, संगीत एवं सभी क्षेत्रों के जनमानस से अपने इस पुनीत कार्य के लिये विशेष सहयोग का आह्वान भी किया है। साहित्य मनीषी एवं काव्य जगत के सशक्त हस्ताक्षर डाॅ शम्भूनाथ त्रिपाठी’अंशुल जी ने भी दुकान जी के आह्वान का पुरजोर समर्थन किया है और ऐसे महान विभूति को समुचित सम्मान प्रदान कर भव्य स्मृति स्थल बनाकर पर्यटन हेतु सुशोभित करने का आग्रह किया है। भारतीय सांस्कृतिक परिषद् के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं अधिवक्ता दुर्गेश दुबे ने भी माँ सरस्वती के वरद्पुत्र की उपेक्षा पर गहरा क्षोभ व्यक्त किया और प्रशासन से ऐसे महापुरुष की स्वर्ण स्मृतियों को उत्तम सम्मान देने का आग्रह किया। भारतीय सांस्कृतिक परिषद के महानगर अध्यक्ष सतीश कुमार गुप्त ने भी दुकान जी के आह्वान का समर्थन करते हुये दारागंज के नाम को निराला नगर नाम से गजट करने का आग्रह किया है।