Reserve Pricing for Agricultural Products कृषि फसलों की भी हो रिज़र्व प्राइसिंग , किसानों को भी मिलना चाहिए उनका हक
हर सरकारी बोली की एक रिज़र्व प्राइस होती है जिसके नीचे समान नही बेचा जाता जैसे अभी मोदी को नीरज चोपड़ा द्वारा दिये गए भाले की रिज़र्व प्राइस 1 करोड़ रही है, शराब के ठेके की रिज़र्व प्राइस होती है, टोल नाके की रिज़र्व प्राइस होती है, सरकारी टेंडर की रिज़र्व प्राइस होती है अर्थात अगर किसी टेंडर के कार्य की रिज़र्व प्राइस 10 लाख है तो कोई भी कांट्रेक्टर उस टेंडर को 10 लाख से नीचे कोट करता है तो उसका टेंडर निरस्त हो जाता है आदि आदि।

अगर हर जगह रिज़र्व प्राइस का सिस्टम है तो मंडी में सरकारी या प्राइवेट बोली में रिज़र्व प्राइस क्यों नही है (मैं रिज़र्व प्राइस की बात कर रहा हूँ ना कि MSP की)। क्यों किसान की मिर्च, टमाटर, भिंडी, गिलकी, लौकी आदि को आढ़तिये और व्यापारी मिलकर 2 से 3 रुपये किलो बेच देते है और बाद में यही माल रिटेल में 30 से 40 रुपये किलो बेचते है। क्यों गेंहू को 1850 प्रति क्विंटल के MSP होने के बावजूद 1400 प्रति क्विंटल बेच दिया जाता है। इसी तरह हर फसल का यही हाल है इसके अलावा आढ़तिये किसान से ही कमीशन लेते है जबकि उन्हें कमीशन व्यापारी से लेना चाहिए।

मेरे हिसाब से हर फसल का (साग सब्जी अनाज या अन्य) का उसकी लागत, पैदावार, टांसपोर्ट और किसान के प्रॉफिट के हिसाब से एक रिज़र्व प्राइस निर्धारित किया जाना चाहिए और उसके नीचे किसी भी आढ़तिये को फसल बेचने की अनुमति नही होना चाहिए (रिज़र्व प्राइस के ऊपर डिमांड और सप्लाई के हिसाब से बेच सकता है)। इस तरह से किसान को उसकी मेहनत का फल मिल जाएगा और इस स्कीम में सरकार पर भी कोई बोझ नही पड़ेगा। अगर कोई आढ़तिया रिज़र्व प्राइस से नीचे फसल बेचता है तो उसका लाइसेंस कैंसिल होना चाहिए।

इस पर किसानों के हित के लिए आवाज़ उठा कर एक कानून की मांग की जानी चाहिए ताकि किसान आढ़तिये और व्यापारी की लूट से बच सके।

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