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लोकसभा में पेश हुआ बिल, क्या अरविंद केजरीवाल रह जाएंगे नाम के मुख्यमंत्री

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एक बार फिर केंद्र और दिल्‍ली की आम आदमी पार्टी सरकार के बीच टकराव के पूरे आसार बन रहे हैं। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने सोमवार को लोकसभा में एक विधेयक पेश किया जो लेफ़्टिनेंट गवर्नर (एलजी) यानी उप-राज्यपाल को अधिक शक्तियां देता है। इसके अलावा यह भी स्‍पष्‍ट किया गया है कि राज्‍य कैबिनेट या सरकार के किसी भी फैसले को लागू करने से पहले एलजी की राय जरूरी होगी। इससे पहले विधानसभा से क़ानून पास होने के बाद उप-राज्यपाल के पास भेजा जाता था।

1991 में संविधान के 239ए अनुच्छेद के ज़रिए दिल्ली को केंद्र शासित राज्य का दर्जा दिया गया था। इस क़ानून के तहत दिल्ली की विधानसभा को क़ानून बनाने की शक्ति हासिल है लेकिन वह सार्वजनिक व्यवस्था, ज़मीन और पुलिस के मामले में ऐसा नहीं कर सकती है।

ट्वीट कर केंद्र पर बोला हमला

दिल्ली और केंद्र सरकार के बीच टकराव कोई नई बात नहीं है। दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार बीजेपी शासित केंद्र सरकार के राष्ट्रीय राजधानी को लेकर लिए गए कई प्रशासनिक मामलों को चुनौती दे चुकी है।

केजरीवाल ने ट्वीट करके कहा कि ये बिल कहता है कि दिल्ली में ‘सरकार’ का मतलब LG होगा। तो चुनी हुई सरकार क्या करेगी? सभी फाइल्स LG के पास जाएंगी। ये सुप्रीम कोर्ट के 4 जुलाई 2018 के फैसले के खिलाफ है, जिसमें कहा गया था कि फाइल्स LG को नहीं भेजी जाएंगी, चुनी हुई सरकार सभी फैसले लेगी और LG को फैसले की कॉपी ही भेजी जाएगी।

दिल्ली के उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने ट्वीट किया कि “चुनाव के पहले बीजेपी का घोषणापत्र कहता है कि दिल्ली को पूर्ण राज्य बनाएंगे। चुनाव जीतकर कहते हैं दिल्ली में एलजी ही सरकार होंगे”।

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