बार बार छोड़ के भोजन क्यों नहीं करना चाहिए ?
राजा शतानि ने सुमन्तु मुनि से पूछा – धनवर्धन वैश्य की कथा क्या है? और उसने कैसा भोजन किया ?
सुमन्तु ऋषि ने कहा – सतयुग में पुष्कर क्षेत्र में धनवर्धन नामक वैश्य रहता था जो धन धान्य से सम्पन्न थे ! एक दिन मध्यान्ह में वैश्यदेव सभी कर्मों से निवृत्त हो सभी बंधुओं, मित्रों और पुत्रों के साथ भोजन कर रहे थे ! तभी बाहर से एक करुण आवाज सुनाई दी, वह वैश्य करुणावश आवाज सुन भोजन बीच में छोड़ कर बाहर गए , लेकिन जाने पर उन्हें वहां कोई नहीं दिखा ! वह वापस आ गए और पात्र में छोड़ा हुआ भोजन खा लिया ! भोजन करते ही उस वैश्य की मृत्यु हो गई ! इस अपराध के कारण परलोक में भी उसकी दुर्गति हुई !
इसलिए छोड़े हुए भोजन को कभी नहीं खाना चाहिए !
इसी तरह अत्यधिक भोजन भी नहीं करना चाहिए ! अत्यधिक भोजन करने से जठराग्नि में ज्यादा रस बनता है, जिससे ज्वर, मदंग्नि, जुकाम आदि हो जाते है !
अजीर्ण हो जाने से तप, दान, हवन , स्नान, तरपन भी ठीक से नहीं हो पाते !
अत्यधिक भोजन करने से अनेक रोग हो जाते है ! इससे आयु घटती है ! लोक निंदा भी होती है ! अंत में सद्गति भी नहीं होती !
उच्छिष्ट मुख से कहीं नहीं जाना चाहिए ! सदा पवित्र मुख रहना चाहिए ! यह मनुष्य को सद्गति की ओर ले जाता है !
इसीलिए एक ही बार में तृप्त होकर भोजन करके उठे !
source – bhavishya puran













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