जाने गई, पर राजनीती नहीं ! अनियमितिता में विपक्ष का साथ या प्रश्न ?
भारत सरकार के प्रति विपक्ष का रुख आक्रामक होता जा रहा है , प्रश्न यह है कि क्या यह सही वक़्त है प्रश्न पूछने का ? महामारी के अनिश्चित माहौल में क्या विपक्ष कि सार्थक भूमिका पर सवाल नहीं उठाने चाहिए ? क्या महामारी भी राजनितिक दलों के लिए मात्र अवसर ही है अपने स्वार्थ सिद्धि के लिए ? क्या जिंदगी से बड़ी हो चुकी है हमारी राजनैतिक महत्त्वाकांक्षाएं? ऐसे ही कई प्रश्नो को जानने कि कोशिश कि परिचर्चा है – जाने गई, पर राजनीती नहीं !












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