हमारे सफल जीवन का मुख्य आधार क्या है?
सफल जीवन
एक बार एक तेरह–चौदह साल के बच्चे ने पिता से पूछा, “पापा… यह सफल जीवन क्या होता है?”
पिता ने बेटे की तरफ मुस्कराते हुए देखा और अपने बेटे से पूछा, “तुम को पतंग उड़ाना कैसा लगता हैं?” बच्चे ने बहुत ही उत्साह से उत्तर दिया, “ऊँचाई पर उड़ती पतंग को देखना मुझे बहुत अच्छा लगता है।”
पिता ने कहा, “चलो हम पतंग उड़ाते है।” वे दोनों अपने घर की छत पर पतंग उड़ाने के लिए चले गए। पिता और पुत्र दोनों पतंग उड़ाने में मस्त हो गए।
थोड़ी देर बाद बेटे ने अपने पिता से कहा, “पापा… धागे की वजह से पतंग और ऊपर नहीं जा पा रही है, क्या हम इसे तोड़ दें! यह और ऊपर चली जाएगी।”
बच्चे के कहने पर पिता ने धागा तोड़ दिया …पतंग थोड़ा-सा और ऊपर गई… और उसके बाद लहरा कर नीचे आयी और दूर अनजान जगह पर जा कर गिर गई।
बेटा उदास हो गया और उसने पिता से पूछा कि, “यह पतंग क्यों गिर गई?”
तब पिता ने अपने बेटे को जीवन का दर्शन समझाया, ” पतंग का अस्तित्व धागे से था बेटा, जब तक पतंग धागे से बंधी थी लहरा रही थी। यह डोर उसे और ऊँचाई पर जाने के लिए रोक नहीं रही थी बल्कि सहारा दे रही थी। बेटा… जिंदगी में हम जिस ऊँचाई पर हैं, हमें अक्सर लगता कि कुछ चीजें, जिनसे हम बंधे हैं, वे हमें और ऊपर जाने से रोक रही है जैसे: घर, परिवार, अनुशासन, माता-पिता, गुरु, समाज और हम उनसे आजाद होना चाहते हैं।
वास्तव में यही वे धागे होते हैं, जो हमें उस ऊँचाई पर बना के रखते हैं…इन धागों के बिना हम एक बार तो ऊपर जायेंगे परन्तु बाद में हमारा वही हश्र होगा, जो बिन धागे की इस पतंग का हुआ।
अतः जीवन में यदि तुम ऊँचाइयों पर बने रहना चाहते हो तो, कभी भी इन धागों से रिश्ता मत तोड़ना… बल्कि अपने प्रेम से इन्हें पोषित करते रहना, यह तुम्हें कभी ऊँचाई से गिरने नहीं देंगे।
धागे और पतंग जैसे जुड़ाव के सफल संतुलन से मिली हुई ऊँचाई को ही ‘सफल जीवन’ कहते हैं।”
*"माता-पिता के प्रति हमारी बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी है। अगर वे दुखी रहते हैं, हमारे प्यार के भूखे हैं, तो हमारे अस्तित्व का मतलब ही क्या है? अगर हम पूरी दुनिया में समन्वय बनाना चाहते हैं, तो यह तब तक नहीं हो सकता जब तक कि हम एक-दूसरे की देखभाल नहीं करते, अपने परिवार से शुरुआत नहीं करते।"*
*दाजी








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