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सच्ची क्षमा



महसूस करें – “मैं कृतज्ञ हूँ,दिल से किसी को क्षमा कर देने की अपनी क्षमता के लिए”

सच्ची क्षमा

एक दिन गौतम बुद्ध अपनी सभा में बैठे थे, जब वहाँ एक व्यक्ति आया जो उन पर बहुत क्रोधित था। उसका मानना था कि बुद्ध कुछ गलत कर रहे हैं, क्योंकि वे केवल लोगों को ध्यान कराते हैं और बड़ी संख्या में लोग उनका अनुसरण करने को आकर्षित हो रहे है।

वह आदमी एक व्यापारी था और वह बहुत उद्वेलित था क्योकि उसके बच्चे बुद्ध के साथ अपना समय व्यतीत कर रहे थे। जबकि वो वह समय पैसा कमाने और अपनी आजीविका सुनिश्चित करने के लिए व्यापार में लगा सकते थे।

उसे लगता था कि दिन के चार घंटे किसी ऐसे व्यक्ति के साथ बैठना जिसकी आँखें हमेशा बंद रहती हैं, समय की पूरी तरह से बर्बादी है और उससे क्या मिलेगा? इसलिए वह बहुत परेशान था और उसने निश्चय कर लिया कि, “मैं इस बुद्ध को सबक सिखाकर रहूँगा!”

क्रोध में भरे हृदय के साथ वह बुद्ध की तरफ बढ़ा।

जैसे ही वह व्यक्ति बुद्ध के नजदीक पहुँचा, उसके सभी नकारात्मक विचार गायब हो गए, लेकिन उसके भीतर का क्रोध शांत नहीं हुआ। वह क्रोध से कांप रहा था पर कुछ बोल नहीं पा रहा था।

चूँकि वह अपनी भावनाओं को शब्दों में व्यक्त करने में असफल था, उसने बुद्ध के चेहरे पर थूक दिया।

बुद्ध, बदले में बस मुस्कुरा दिए!

बुद्ध के साथ बैठे उनके शिष्य गुस्से से भर गए। वे आगे आकर इस हरकत का जवाब देना चाहते थे लेकिन बुद्ध की उपस्थिति ने उन्हें ऐसा करने की अनुमति नहीं दी। उन्हें विश्वास ही नहीं हो रहा था कि कोई बुद्ध के साथ इतना निंदनीय व्यवहार कर सकता है! लेकिन वे कुछ कह नहीं पाए।

और वह आदमी भी वहाँ अधिक समय तक नहीं रुक सका। जब उसने देखा कि उसकी हरकत पर आसपास के लोगों की कोई प्रतिक्रिया नहीं आई और बुद्ध भी बदले में केवल मुस्कुराए हैं, तो कुछ समय बाद, उसने महसूस किया की, “अगर मैं कुछ और देर तक यहाँ रुका तो मैं अंदर ही अंदर फट जाऊँगा।” और वह व्यापारी वहाँ से चला गया।

जब वह घर लौटा तो वह ‘मुस्कुराते हुए गौतम बुद्ध’ की उस छवि को अपने दिमाग से नहीं मिटा सका। अपने जीवन में पहली बार, वह किसी ऐसे व्यक्ति से मिला था जिसने इस तरह के अपमानजनक कृत्य पर, इतनी असाधारण प्रतिक्रिया दी हो…

वह रात भर सो नहीं सका और उसके हृदय का रूपांतरण हो गया। वह बस कांप रहा था। उसे लग रहा था जैसे उसकी पूरी दुनिया उसके सामने ढह गई हो!

अगले दिन वह व्यक्ति उठा, और जाकर बुद्ध के चरणों में गिर पड़ा और बोला, “कृपया मुझे क्षमा करें!
मुझे नहीं पता था कि मैं क्या कर रहा हूँ।”

पर बुद्ध ने उत्तर दिया, “मैं आपको क्षमा नहीं कर सकता।”

इस प्रतिक्रिया से बुद्ध के सभी शिष्य स्तब्ध रह गए। बुद्ध अपने जीवन में हमेशा ही बहुत दयालु रहे हैं। उन्होंने अपने आश्रम में सभी को स्वीकार किया था, चाहे उसका अतीत कुछ भी हो। और अब वह इस व्यवसायी से कह रहे थे कि वह उसके व्यवहार को क्षमा नहीं कर सकते।

बुद्ध ने उन सभी को देखा और सभी को सदमे की स्थिति में पाया…

उन्होंने समझाना शुरू किया, “जब तुमने कुछ किया ही नहीं है तो मैं तुम्हें क्षमा क्यों करूँ? तुमने क्या गलत किया है? मैं तुम्हारे किस व्यवहार के लिए क्षमा करूँ?”

व्यापारी ने उत्तर दिया, “कल एक व्यक्ति इस सभा में आया था और क्रोध में आकर उसने आपके मुँह पर थूक दिया था। मैं वही व्यक्ति हूँ!”

बुद्ध ने कहा, “वह व्यक्ति अब यहाँ नहीं है, जिस पर कल तुमने थूका था। यदि मैं कभी उस व्यक्ति से मिलूंगा, जिस पर कल तुमने थूका था, तो मैं उसे तुमको क्षमा करने के लिए कह दूँगा।”

गौतम बुद्ध ने कहा, “मेरे लिए, वह व्यक्ति जो इस क्षण मेरे सामने खड़ा हैं, वह एक अद्भुत व्यक्ति हैं। तुमने कुछ भी गलत नहीं किया है।”

हम हमारे जीवन में किसी भी व्यक्ति को वास्तव में कब क्षमा करते हैं…….?

सच्ची क्षमा तब होती है जब हम किसी व्यक्ति को क्षमा कर देते हैं और उसे पता भी नहीं चलता कि वह क्षमा किया जा रहा है। उन्हें गलती के लिए दोषी भी महसूस नहीं कराना चाहिए।

यह सच्ची क्षमा है।

अगर हम किसी को माफ कर देते हैं और उन्हें उनकी गलती की याद दिलाते रहते हैं और उन्हें हर समय दोषी महसूस कराते हैं तो इसका अर्थ यह है कि, हमने वास्तव में अभी तक उन्हें क्षमा नहीं किया है।

किसी व्यक्ति के लिए अपराधबोध ही पर्याप्त सजा है।

          

किसी के साथ हुए कटु अनुभव के भावनात्मक बोझ से छुटकारा पाने का एकमात्र उपाय उसे दिल से भुलाकर क्षमा कर देना है।”
दाजी

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