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Pitra Visarjan Tarpan जाने पितरों का तर्पण करते समय अंगूठे एवं तर्जनी उंगली के मध्य से ही जल जमीन पर क्यों छोड़ा जाता है

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जाने पितरों का तर्पण करते समय अंगूठे एवं तर्जनी उंगली के मध्य से ही जल जमीन पर क्यों छोड़ा जाता है

सनातन धर्म में श्राद्ध पक्ष को बहुत ही पवित्र समय माना गया है,श्राद्ध से कई परंपराएं भी जुड़ी हैं। लेकिन इन परंपराओं के पीछे का कारण बहुत कम लोग जानते हैं आचार्य पं. धीरज द्विवेदी “याज्ञिक” ने बताया कि आज आपको श्राद्ध से जुड़ी एक ऐसी ही परंपरा के बारे में बता रहे हैं, जो हम बचपन से देखते आ रहे हैं, लेकिन उसके पीछे का कारण से अनजान हैं। वो परंपरा है तर्पण करते समय दाहिने हाथ के अंगूठे एवं तर्जनी उंगली के बीच से जल जमीन पर छोड़ना….
इसलिए तर्पण करते समय अंगूठे एवं तर्जनी उंगली के मध्य से छोड़ते हैं जल:-
श्राद्ध कर्म करते समय पितरों का तर्पण एवं पूजन भी किया जाता है यानी पिंडों पर दाहिने हाथ से अंगूठे एवं तर्जनी उंगली के मध्य से जलांजलि दी जाती है।
इस प्रकार से पितरों को जल देने एवं पूजा करने से से उनकी आत्मा को शांति मिलती है। इसके पीछे का कारण हस्तरेखा से जुड़ा है।
शास्त्रों में कहा गया है कि-जत्र ब्रह्मांडे तत्र पिंडे।
अर्थात्-जो ब्रह्मांड में है वही इस शरीर रुपी पिंड में है।
इस प्रकार शास्त्रानुसार एवं हस्तरेखा के अनुसार पंजे के जिस हिस्से पर अंगूठा होता है उस हिस्से से तर्जनी उंगली के मध्य तक पितृ तीर्थ कहलाता है।तथा तर्जनी उंगली के नीचे बृहस्पति पर्वत होने से तर्जनी उंगली बृहस्पति की एवं पितरों की अंगुली कही गई है।और बृहस्पति बुद्धि के देवता माने जाते हैं।
कहा गया है कि देवताओं की पूजा भाव प्रधान एवं पितरों की पूजा कर्म प्रधान है। अतः देवताओं की पूजा भाव से और पितरों की पूजा बुद्धि से करना चाहिए।
इस प्रकार अंगूठे एवं तर्जनी उंगली के मध्य से चढ़ाया जल पितृ तीर्थ से होता हुआ पिंडों तक जाता है।ऐसी मान्यता है कि पितृ तीर्थ से होता हुआ जल जब अंगूठे एवं तर्जनी के मध्य से पिंडों तक पहुंचता है तो पितरों को पूर्ण तृप्ति का अनुभव होता है।
यही कारण है कि हमारे विद्वान मनीषियों ने पितरों का तर्पण एवं पूजन करते समय अंगूठे एवं तर्जनी उंगली के मध्य से जल देने और तर्जनी उंगली पूजा करने की परंपरा बनाई।
अतः पितरों के श्राद्ध में पूजन-अर्चन करते समय चन्दन आदि तर्जनी उंगली से अर्पण करना चाहिए।और तर्पण करते समय तर्जनी उंगली और अंगूठे के बीच से (पितृतीर्थ,पित्र घटे) तर्पण एवं पिंडदान आदि करना चाहिए।

आचार्य धीरज द्विवेदी “याज्ञिक”
(ज्योतिष वास्तु धर्मशास्त्र एवं वैदिक अनुष्ठानों के विशेषज्ञ)
संपर्क सूत्र – 09956629515
08318757871

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