के. एन. नैनवाल( उतराखड)

अलग उत्तराखंड राज्य आंदोलन की कुछ यादें
उतराखड़ पृथक राज्य वन्ने के इस युवा प्रदेश के राज्य आन्दोलन कारी सम्मान के दर दर भटक रहे है आज खटीमा गोली काड़ को काला दिवस के रुप मे मनाते आन्दोलनकारी ,गोली काड़ व उतर प्रदेश पुलिस तत्वा धान मे हुयी आन्दोलनकारी पर हुयी थी बरबरता पर आन्दोलन का दर्द छलका, अलग उत्तराखंड राज्य की मांग को लेकर 1990-2000 के बीच आन्दोलन चरम पर था भिन्न भिन्न संघर्ष समितियों का गठन कर लोग अपने अपने ढंग से राज्य आन्दोलन में कूद पडे थे आये दिन चक्काजाम,धरने प्रदर्शन कोई सीमा नहीं थी हर चाय की दुकान,पान की दुकान शादी ब्याह का मौका हो या कोई भी सार्वजनिक सम्मेलन होली दिवाली से लेकर रेल,बस सफर सभी जगह अलग राज्य की माँग जोर पकडती जा रही थी. उस दौर में मैं भी अपने सहयोगियों के साथ निकल पडता था कभी इण्टर कालेज में कभी रोडवेज वर्कशाप कभी बैंक में बन्द कराने निकलते थे ,एक बार रोडवेज वर्कशाप के अन्दर गये तो वहाँ बहुत से कर्मचारी काम छोड हमारे साथ बाहर आ गये,हमारा काम था सभी सरकारी कार्यालयों में बन्द सफल बनाने की अपील कहीं सहयोग मिलता तो कहीं पुलिस बुलाकर सेकाई भी होती थी.
लगभग एक दर्जन सहयोगियों के साथ एक बार राजाराम चौराहे पर हमने तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह का पुतला फूँका दूसरे दिन अमर उजाला में खबर छपी तो एल.आई.यू.का एक जवान जो कान में मशीन लगाये रखता था सुबह सुबह मेरे घर पहुंच गया और कहने लगा पुतला नहीं फूँका है खबर झूठी है आप इसमें लिख दो कागज दिखा रहा था खबर झूठी है मेरे पीछे पड गया कि मेरी नौकरी चली जायेगी खैर वह समय था ही ऐसा कि एल।आई.यू.से बच कर ही काम को अन्जाम देते थे एक तरफ तराई रक्षा मोर्चा था मैं जब अपने कार्यस्थल पर जाता मुझे वहाँ तराई रक्षा मोर्चा वालों से बहस करनी पडती थी दो दो घंटे गरमागरम बहस चलती थी. बहुत से दल अलग उत्तराखंड राज्य के विरोध में थे तो कोई हिल काउंसिल के पक्ष में तमाम विरोधाभासों के चलते आन्दोलन जोर पकड रहा था दर्जनों राज्य आन्दोलन समितियां बनी थी उत्तराखंड क्रान्ति दल प्रमुख रूप से आन्दोलन की कमान हाथ लिए था इस बीच एक सितंबर को खटीमा कोतवाली घेराव का ऐलान हो गया हजारों की भीड खटीमा में जुटने लगी चारों ओर से आन्दोनकारियों को कोतवाली घेरते देख कोतवाल ने गोली चला दी हजारों की भीड पर गोलियां चलने से भगदड़ मच गयी पी.ए.सी.द्वारा आन्दोनकारियों की धरपकड़ होने लगी बहुत से लोग हताहत हुए उस समय जो खबर आती थी कि गोली लगने वाले मृतकों को उठा उठाकर गाडिय़ों में भर रहे हैं जंगलों में छोडा जा रहा है ऐसी खबर शाम तक आग की तरह फैल रही थी कुछ टाप लीडर जो आन्दोलन की अगुवाई कर रहे थे नेपाल भाग गये उनके खिलाफ खटीमा थाने से वारण्ट भी था कई महिनों तक छुप छुप कर नेताओं ने जान बचाई ।
हम तो खटीमा पहुँचे ही थे कि भगदड़ मच गयी उल्टे जान बचाकर भागे वह समय ऐसा था कि पुलिस से नजर बचाकर ही आन्दोलन को धार देते थे।
सन् 1996-97 में केन्द्र में एच.डी.देवगौड़ा के नेतृत्व में राष्ट्रीय मोर्चे की सरकार रही देवगौड़ा जी प्रधानमंत्री थे पहली बार वे खटीमा आये थारू इण्टर कालेज के प्रांगण में विशाल मंच बनाया गया तत्कालीन खटीमा ब्लाक के ब्लाक प्रमुख श्री बहादुर सिंह पाटनी जी उस सभा का संचालन कर रहे थे मुझे भी प्रवेश कार्ड मिला था हमारे दर्जनों साथियों के साथ प्रधानमंत्री जी को हमने ज्ञापन सौंपा था और पहली बार भारत के प्रधानमंत्री जी ने अलग उत्तराखंण्ड उन्होने भी अलग राज्य की मांग की बिचार करने की बात कही थी श्री कान्तिबल्लभ जोशी ने अपनी यादो करते हुए कहा कि तत्वकालीन प्रधान मंत्री था चूँकि वे हिन्दी कम बोलते थे उत्तराखंड की जगह उत्तरकाण्ड कह रहे थे । दिनो उतर प्रदेश पुलिस द्बारा आन्दोलन कारीयो पर काफी कठोर कार्यवाही की जाती थी उतर प्रदेश पुलिस जो यातनाएँ हमारे पृथक राज्य की माग करने वाले आन्दोलनकारीयो के कई आन्दोलन कारीयो को जेल मे डाल दिया जाता कई आन्दोलनकारी ने जान की परबाह किए बैगर राज्य माग को लेकर राज्य के विभिन्नज पर जगहो उतराखंड बच्चो ,युवा से लेकर बूढे तक इस डठे रहे लम्बे जन आन्दोलनव जान माल की क्षति के बाद 9 नवम्बर 2000को देश के प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने सरकार ने पृथक राज्य उतराचल की स्थापना की घोषणा की

पहली सरकार माननीय नित्यानंद स्वामी जी के नेतृत्व में बनी तब पहले मन्त्रीमण्डल में आज महाराष्ट्र के राज्यपाल महामहिम श्री भगत सिंह कोश्यारी जी ऊर्जा मन्त्री बने उनके मन्त्री बनने के बाद पहली बार टनकपुर आने पर हमने उनसे वर्तमान में टैक्सी सटैण्ड रोड से जो उस समय सूखी नहर थी के ऊपर से कर्मचारी कलोनी के लिए पुल की मांग की थी ।
असस्वस्था के कारण नित्यानंद स्वामी जी ने इस्तीफा दिया और भगत सिंह कोश्यारी जी दूसरे मुख्यमंत्री बने और उन्हीं के नेतृत्व में विधानसभा के चुनाव हुए और नतीजे भा.ज.पा.के विपरीत रहे 35 सीट जीतकर कांग्रेस ने स्वर्गीय नारायण दत्त तिवारी जी के नेतृत्व में सरकार बनायी ।
श्री तिवाड़ी जी द्वारा आन्दोनकारियों के सम्मान में कई कल्याणकारी योजनाएं चलाई आन्दोनकारियों को चिन्हित करने का आदेश दिया लेकिन चिन्हीकरण में भारी घपलेबाजी हुई से रोज झगडा करने वाले मेरे साथ के ठेकेदार तराई रक्षा मोर्चा के सक्रिय सदस्य आन्दोलनकारी चिन्हित हो गये और मैं नहीं।
मैंनें उन तराई रक्षा मोर्चा वाल़ों से पूछा भाई साहब आप तो कहते थे क्या खाओगे अलग उत्तराखंड लेकर आज आन्दोलनकारी कैसे चिन्हित हो गये ?
उनके पास कोई जबाब नहीं था वे कह रहे थे हमें खुद पता नहीं यह कैसे हो गया?
ये है मेरे अलग उत्तराखंड बनने के बाद की कहानी मैं भी चिन्हीकरण के लिए लगातार पाँच छः वर्षों तक फिर से आन्दोलन करता रहा थक हार कर अब कोई आन्दोलन नहीं करता क्योंकि जिसकी लाठी उसकी भैंस ।
मेरे जैसे हजारों आन्दोलनकारी आज भी संघर्ष कर रहे हैं लेकिन जो संघर्ष कर ही नहीं रहे थे वे आज सुविधाएं भी ले रहे हैं पैंसन भी ले रहे हैं।
श्री कान्ति बल्लभ जोशी ने कहा कि हमने विधायक से गुहार लगायी मगर ढाक के तीन पात वाली कहावत सुन्ने को मिली बिधियक से आग्रह किया कि जितने भी राज्य आन्दोलन कारी थे वह चिन्हीत हो चूके है सतासीन एक नेता जी ने कह दिया दाज्यू अब भूल जाओ। श्री कान्ति बल्लभजोशी जैसे प्रदेश मे कई आन्दोलन कारी है जो बर्तमान
मुख्यमंत्री माननीय पुष्कर सिंह धामी से निवेदन करता हूँ कि जैसे आपने खटीमा के 816 बंचित आन्दोनकारियों को 2012 में एक झटके में चिन्हित करवाया था वैसे ही हम भी उस दौर में खटीमा तहसील के अन्दर ही आते थे लेकिन अब चम्पावत हो गया तो क्या हुआ हमारा रिकार्ड उन 816 के साथ ही है जिला चम्पावत के 2009 में शासन को प्रेषित लिस्ट फाईनल करैं और सभी 274 आन्दोनकारियों को चिन्हित करने की कृपा करैंगे हम सब आपके आभारी रहैंगे।उतराखंड़ राज्य आन्दोलन कारी कान्ति बल्लभ जोशी ने अपने सोसल मिडिया पर अपना दुख जाहिर किया कि राज्य आन्दोलन मे सक्रिय रहे आन्दोलनकारी आज भी चिन्हीकरण के लिए दर की ठोकरे खाने को मजबूर है उतराखंड राज्य बन्ने के बाद सत्तासीन सरकार अपने राजनैतिक करताओ को राज्य आन्दोलन कारीयो के खिताब से सम्मान दिया गया,


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