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हरेला पर्व

harela parv

हरेला कुमाऊँ और उत्तराखंड वासियों का प्रमुख पर्व है यह पर बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। चूंकि कुमाऊँवासी आदिकाल से प्रकृति के पुजारी रहे हैं और प्रकृति में ही अपने देवी-देवताओं के स्वरूप को देखते आये हैं अतः इसी भावना को जीवान्त बनाये रखने के लिए हरेला पर्व मनाया जाता है।

हरेला का गीत

इस दिन कुमाऊँनी भाषा में गीत गाते हुए छोटों को आशीर्वाद दिया जाता है –

जी रये, जागि रये, तिष्टिये, पनपिये,
दुब जस हरी जड़ हो, ब्यर जस फइये,
हिमाल में ह्यूं छन तक,
गंग ज्यू में पांणि छन तक,
यो दिन और यो मास भेटनैं रये,
अगासाक चार उकाव, धरती चार चकाव है जये,
स्याव कस बुद्धि हो, स्यू जस पराण हो.

गृहमंत्री अमित शाह, राज्यसभा सदस्य अनिल बलूनी, राज्य के सीएम पुष्कर सिंह धामी ने हरेला की शुभकामनाएं दी। इसके साथ ही सीएम से लेकर तमाम मंत्री व नेतागण पौधे रोपकर धरा को हरा बनाने का संदेश दिया। सहस्त्रधारा हेलीपैड के पास सीएम धामी और वन मंत्री हरक सिंह रावत ने पौधरोपण किया। हरेला पर्व पर जन मीडिया टीवी का परिवार भी आमजन से पौधारोपण करने और उनके संरक्षण का संकल्प लेने की अपील करता है।

गृहमंत्री अमित शाह ने ट्वीट किया, प्रकृति उपासना को समर्पित देवभूमि उत्तराखंड के लोकपर्व ‘हरेला’ की प्रदेशवासियों को हार्दिक शुभकामनाएं। भगवान बद्री विशाल व बाबा केदारनाथ जी से ये प्रार्थना करता हूं कि देवभूमि की परंपरा व संस्कृति का प्रतीक यह पर्व सभी के जीवन में उत्तम स्वास्थ्य, सुख व समृद्धि लेकर आए। वहीं, राज्यसभा सदस्य अनिल बलूनी ने ट्वीट किया, प्रकृति का संतुलन बनाए रखने का पर्व ‘हरेला’ मानव और पर्यावरण के अंतरसंबंधों का अनूठा पर्व है।एक दूसरे की उन्नति, समृद्धि और लंबी उम्र की कामना के प्रतीक उत्तराखंड के महान लोक पर्व हरेला की सभी देशवासियों को हार्दिक शुभकामनाएं।

सावन लगने से नौ दिन पहले आषाढ़ में हरेला बोने के लिए किसी थालीनुमा पात्र या टोकरी का चयन किया जाता है. इसमें मिट्टी डालकर गेहूँ, जौ, धान, गहत, भट्ट, उड़द, सरसों आदि 5 या 7 प्रकार के बीजों को बो दिया जाता है. नौ दिनों तक इस पात्र में रोज सुबह को पानी छिड़कते रहते हैं. दसवें दिन इसे काटा जाता है. 4 से 6 इंच लम्बे इन पौधों को ही हरेला कहा जाता है. घर के सदस्य इन्हें बहुत आदर के साथ अपने शीश पर रखते हैं. घर में सुख-समृद्धि के प्रतीक के रूप में हरेला बोया व काटा जाता है! इसके मूल में यह मान्यता निहित है कि हरेला जितना बड़ा होगा उतनी ही फसल बढ़िया होगी! साथ ही प्रभू से फसल अच्छी होने की कामना भी की जाती है.

श्रावण मास में मनाये जाने वाला हरेला सामाजिक रूप से अपना विशेष महत्व रखता तथा समूचे कुमाऊँ में अति महत्वपूर्ण त्यौहारों में से एक माना जाता है. जिस कारण इस अन्चल में यह त्यौहार अधिक धूमधाम के साथ मनाया जाता है. जैसाकि हम सभी को विदित है कि श्रावण मास भगवान भोलेशंकर का प्रिय मास है, इसलिए हरेले के इस पर्व को कही कही हर-काली के नाम से भी जाना जाता है. क्योंकि श्रावण मास शंकर भगवान जी को विशेष प्रिय है. यह तो सर्वविदित ही है कि उत्तराखण्ड एक पहाड़ी प्रदेश है और पहाड़ों पर ही भगवान शंकर का वास माना जाता है. इसलिए भी उत्तराखण्ड में श्रावण मास में पड़ने वाले हरेला का अधिक महत्व है.

हरेला का अर्थ हरियाली से है इस दिन सुख समृद्धि और ऐश्वर्य की कामना की जाती है. उत्तराखंड में आज कई जगह लोग विभिन्न तरह के पोधो जैसे पीपल, आम, आंवला आदि पौधों का रोपण भी कर रहे हैं और सभी से पर्यावरण संरक्षण की अपील भी कर रहे हैं!

जन मीडिया टीवी उत्तराखंड के लोगो को इस पर बधाई देते हुए लोगो से पौधे लगने की अपील करती है !

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