साधारणतया यदि कोई आपसे पूछे कि गङ्गाजी उद्गम स्थान क्या है तो आप सरलता से कह सकते हैं कि गङ्गोत्रि अथवा गोमुख। परन्तु यह उत्तर मात्र खलासी, गनमैन, TT की परीक्षाओं में ही अच्छा लगता है।
पर बात जब धर्म, आस्था तथा भूगोल की हो तो गङ्गाजी लगभग छः नदियों के मिलन के बाद बनतीं हैं!!
भागीरथी
मन्दाकिनी
विष्णुगङ्गा
धौलीगङ्गा
नन्दाकिनी, तथा
पिण्डार… इन नदियों के संगम स्थल को प्रयाग कहते हैं और गङ्गाजी बनने से पहले इन नदियों को पाँच प्रयागों से होकर प्रवाहित होने पड़ता है। ‘प्रयाग’ दो नदियों को संगम-स्थल को कहते हैं।
विष्णुगङ्गा तथा धौलीगङ्गा के संगम को ‘विष्णुप्रयाग’ कहा जाता है। नन्दाकिनी नदी के संगम स्थल को नन्दप्रयाग कहते हैं, तत्पश्चात आगे पिण्डार के संगम को ‘कर्णप्रयाग’ कहते हैं।
इसके पश्चात श्रीकेदारनाथ से निकलनेवाली मन्दाकिनी जब अलकनन्दा में मिलती हैं तो उनका संगम रुद्रप्रयाग गया है। इसके आगे अलकनन्दा तथा भगीरथी के संगम-स्थल को ‘देवप्रयाग’ कहते हैं।
देवप्रयाग के बाद ये बन जाती हैं गङ्गा।
तो इस उत्तर में आपको यह याद रखना चाहिए गोमुख से भागीरथी निकलती हैं, केदारनाथ से मन्दाकिनी तथा बद्रीनाथ से निकलती हैं विष्णुगङ्गा।
गङ्गाजी का कोई एक उद्गम स्थल नहीं है!



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