सिर्फ ऑक्सीजन ही नहीं निजी अस्पतालों की महंगाई से भी मर रहे हैं मरीज, देखिए एक कोरोना मरीज से कितनी डिमांड कर रहे हैं प्रयागराज के निजी अस्पताल
प्रयागराज। कोरोना संक्रमित मरीजों के लिए सबसे बड़ा चैलेंज सिर्फ ऑक्सीजन रेमेसिविर इंजेक्शन ही नहीं है। बल्कि सबसे बड़ा चैलेंज जो मध्यमवर्गीय संक्रमित मरीजों के सामने आ रहा है वह है अस्पतालों में बेड की कमी, या यूं कहें की बैड होते हुए भी अस्पताल संचालक सिर्फ ऐसे लोगों को बेड मुहैया करवा रहे हैं जो उन्हें मोटी रकम देने में सक्षम हैं।
जी हां, हम बिल्कुल सही कह रहे हैं। निजी अस्पताल अब भर्ती हो रहे संक्रमित मरीज की जेब देखकर ही भर्ती कर रहे हैं। यह उन्हें समझ में आया कि यह मरीज पैसे से मजबूत स्थिति में है तो तत्काल उसे बेड की व्यवस्था करा दी जा रही है। वहीं दूसरी तरफ मध्यम वर्गीय परिवार को देखते ही बेड ना होने की बात कही जा रही है। झलवा के अमित श्रीवास्तव ने ‘कवरेज इण्डिया’ को बताया की वह सुबह से ही अपने पिता को लेकर सारे निजी अस्पतालों का चक्कर लगा रहे हैं किंतु कोई भी अस्पताल में भर्ती करने के लिए तैयार नहीं हुआ।
शहर के जो नामचीन अस्पतालों ने उन्हें भर्ती करने की बात कही भी तो उनका रेट सुनकर अमित के होश फाख्ता हो गए। दरअसल प्रयागराज शहर के सबसे बड़े अस्पताल यूनाइटेड मेडिसिटी है कोविड के इलाज के लिए जो खर्चा बताया वह 5 लाख रूपए था, वात्सल्य अस्पताल ने 2 लाख से 5 लाख तक का बजट बताया।
तो वही गंगा पार के सबसे विवादित अस्पताल विनीता हास्पिटल ने 2 लाख रूपए की मांग की। इसी प्रकार प्राची अस्पताल ने भी 2 लाख रूपया, ओझा अस्पताल 1 लाख, यश हास्पिटल 2 लाख, सृजन अस्पताल 3 लाख रूपए, नारायण स्वरूप अस्पताल ने 3 लाख रूपए की मांग की। बड़ा सवाल ये है कि अभी तक वैक्सीन और रेमेसिविर इंजेक्शन के अलावां कोई भी दवाई कोरोना संक्रमण को खत्म करने में कारगर नहीं पाई गई है।
बावजूद इसके अस्पतालों द्वारा आम आदमी से इतने बड़े धनराशि की मांग क्या अनर्गल नहीं है। जिनके पास पैसा है वह आसानी से ऐसे अस्पतालों में अपना इलाज करा सकते हैं, लेकिन मध्यम वर्गीय परिवार इतना पैसा देकर अपना इलाज कराए भी तो कैसे।


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