
महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं सभी महिलाओं को । एक कहानी महिला दिवस पर !
ज्योति वैसे तो रोज सुबह उठ जाती है लेकिन, आज उससे उठा नहीं जा रहा । शरीर दर्द से टूट रहा है , गले में भी बहुत दर्द है शायद टॉन्सिल बढा हुआ है और इसी कारण बुखार भी है ।
तभी ख्याल आया ! अरे आज तो बच्चों का पेपर है ! वो हड़बड़ाते हुए किचन में पंहुची । जल्दी जल्दी दूध उबालने डाला , काढा हर दिन सबको देती ही है कोरोना काल जो चल रहा है । इसलिए सबसे पहले उसने काढा बनाया सबको दिया और खुद भी लिया गले में थोडा आराम लगे शायद ! काढे के बाद चाय की बारी थी लेकिन बुखार की वजह से हिम्मत नहीं हो रही थी ,लेकिन खुद नहीं काम करेगी तो कौन कर देगा ? फिर भी पति से बोली ,”तबियत ठीक नहीं लग रही ” पति,” क्यों क्या हुआ ? गले में बहुत दर्द है और बुखार जैसा भी लग रहा है शायद टॉन्सिल बोल ही रही थी ज्योति कि पति ने कहा ,”नहीं सब ठीक है कुछ नहीं है तुमको ऐसे ही नाटक करना होता है ।” ज्योति को आदत ही थी सुनने की ये सब ,गुस्सा तो बहुत आया लेकिन चुपचाप चाय बनाने चली गई, एक तरफ चाय चढाई और दूसरी साइड ब्रेड सैंडविच बना ली सभी के लिए।
दूध और सैंडविच बच्चों को देकर अपना और राजेश ((पति का नाम) के लिए चाय लेकर आती है राजेश की तरफ चाय बढाते हुए , “लो चाय पी लो “, कहकर चाय राजेश को थमाती है और खुद अचेतन अवस्था में एक जाती है । पति ,”चाय पी क्यों नहीं रही लेट गई हो ?” कहकर ज्योति को उठाने की कोशिश करता है , “अरे तुम्हें तो सच में बुखार है” ! ,”न जी मुझे बुखार कैसे हो सकता है मै तो अमृत पीकर आई हूं। “
“ताने मार रही हो ?पति ने ज्योति से कहा। अरे नही मेरी ऐसी हिम्मत कहां?ज्योति बोली ।
राजेश ने कहा अच्छा ठीक है आराम कर लो मां से बोल दूंगा आज वो दोपहर में बना लेगी , तुमको क्या खाना है बता दो? , “मैं अपना बना लूंगी जब खाना होगा अभी मैं लेटूंगीं” ज्योति ने कहा ।
“तुमसे जितना कहूं उतना ही बोलो “राजेश ने कहा । “ठीक है फिर बहुत पतली खिचड़ी खाऊंगी क्योंकी गले में दर्द है ” राजेश ने अपनी मां से कहा, मां आज तुम खाना बना लेना ज्योति की तबीयत ठीक नहीं है। ऐसा करना सबके लिए खिचड़ी ही बना लेना और पतली ही खिचड़ी बना लेना ।”
राजेश की मां ज्योति को पसंद नहीं करती थी लेकिन अब बेटे ने कह ही दिया तो क्या करे? उन्हें बनाना ही था । बेटे को खुश करने और बहू को परेशान करने का सुनहरा अवसर मिल गया था ।
खाने में राजेश की मां ने दो तरह की सब्जी दाल और रोटी बना लिए वैसे तो दिखाने के लिए उनसे चला भी नहीं जा रहा होता है । लेकिन आज ये सब बना ली अब खाने में जैसी भी हो !
राजेश को आवाज देकर , “खाना बन गया है आकर ले जाओ “।राजेश बच्चों से खाना निकालने को कहता है । बच्चे खाना निकाल कर ले गए तो राजेश ने ज्योति को उठाया,” उठो खाना खा लो फिर दवा ले लेना “।उसका बुखार बढ चुका था दो बार उल्टियां भी कर चुकी थी । राजेश ने खाने की थाली ज्योति के हाथों में पकड़ा दी।
ज्योति थाली पकड़ी सोच ही रही है कि कैसे खाऊं? राजेश बोलता है,” खा क्यों नहीं रही “? खिचड़ी? इसे कैसे खाऊं थूक भी निगला नहीं जा रहा ! ज्योति बोली । इतना ज्योति के बोलते ही राजेश आगबबूला हो चुका था ,”बैठे बैठे खाने को मिल रहा है तो नाटक दिखा रही हो “! राजेश ने ज्योति से कहा ।
अब तो ज्योति के आंखे बरबस ही बरस पड़ी बैठे बैठे खाती हूं मैं?
सुबह से शाम अकेले पूरा घर का काम करती है मदद के नाम पर कोई खुद से भी पानी नहीं ले सकता , कोई डिमांड नहीं करती ,कभी कोई शौक नहीं पालती , आज बिमार हो गई है तभी तो ……….!
ये शब्द उसके स्वाभिमान पर चोट था उसने निर्णय किया खाना तो वो नहीं खाएगी और तभी जब वो खुद बनाएगी । उसने अपने बच्चे से गर्म पानी देने को कहा , और उसी पानी से उसने दवा खाई ,लेकिन एक निवाला मुंह में नहीं डाली । राजेश देखता रह गया ,आखिर उसने ज्योति के स्वाभिमान को ठेस पंहुचाया था ।
महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाए ।


Leave a Reply