स्वतंत्रता दिवस, हो या गणतंत्र दिवस, लाल किले से लेकर प्रेसिडेंट और प्राइम मिनिस्टर के दफ्तरों तक फहराए जाने वाले खादी के तिरंगे झंडों का कर्नाटक से सीधा संबंध है। हुबली में बेंगेरी स्थित कर्नाटक खादी ग्रामोद्योग संयुक्त केंद्र एकमात्र ऐसी संस्था है जहां पर देश भर में फहराए जाने वाले झंडे बनते है।
इस संघ को ISI की पहचान ने पूरे देश में विभिन्न आकार के खादी से बने तिरंगे झंडे की सप्लाई करने का अधिकार प्रदान किया है। खास बात तो यह है कि संघ द्वारा बनाए जाने वाला प्रत्येक तिरंगा झंडा भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) के मानकों का पालन करते हुए बनाया जाता है। आकार-प्रकार, धागे की मजबूती या रंग में जरा सी भी चूक बनाने वाले को जेल में डाल सकती है।
कैसे बनता है तिरंगा
तिरंगा बनाने के लिए खादी की आपूर्ति बागलकोट से होती है। इस खादी का निर्माण केवल हाथ से चलाए जानेवाले चरखों से किया जाता है। इसे तीन भागों में बांट कर केसरिया, सफेद तथा हरे रंग की डाई की जाती है। इसके बाद निर्धारित आकार में काटकर बीच में नीले रंग का अशोक चक्र छापा जाता है। फिर केसरिया, सफेद तथा हरे रंग की पट्टियों से तिंरगे की निर्धारित आकार में जापानी सिलाई मशीनों से सिलाई की जाती है। तिरंगे के निर्माण के लिए इनकी नाप बेहद अहम है। इसमें 3:2 का अनुपात सुनिश्चित किया जाता है, जिसमें तीन पट्टियां होती हैं। सबसे ऊपर केसरिया, बीच में सफेद और आखिर में हरा रंग होता है। साथ ही बीच में सफेद वाली पट्टी में नीले रंग का चक्र भी होता है जिसमें 24 तीलियां बनी होती हैं। सिर्फ 9 आकार के तिरंगे झंडे को तैयार किया जाता है। जिसमें सबसे छोटा आकार 6X4 इंच (150X100 MM) और सबसे बड़ा आकार 21 X 14 फीट (6300 X 4200 mm) का होता है। BIS द्वारा कपड़े की जांच के बाद ही उसको तीन भागों में बांटा जाता है। तिरंगे को बनाने के बाद उसको इस्त्री किया जाता है और बांधा जाता है जिसको भी BIS फिर से जांचती है। उनकी हां भरने के बाद ही उन तिरंगे को बेचने की अनुमति होती है।
महिलाएं तैयार करती हैं तिरंगा
यहां सूत काटने से लेकर तिरंगा को फाइनल टच देने तक के सारे काम महिलाएं ही करती हैं। संस्था में महिलाएं रोज 8 से 10 घंटे तक लगातार काम करती हैं। तिरंगे की तरफ यह बेमिसाल निष्ठा और निपुणता के प्रति नजर की वजह से ही इन्हीं महिलाओं के ऊपर हमारे लिए तिरंगा बनाने की जिम्मेदारी आज भी बरकरार है।



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