विनम्रता हमारी ताक़त है या कमज़ोरी?
विनम्रता
अहंकार कब हमारे असल अस्तित्व को अपने घेरे में घेर लेता है, हमें पता ही नहीं चलता! हर पल की जागरूकता ही हमें लक्ष्य तक ले चल सकती है।
एक बार नदी को अपने पानी के प्रचंड प्रवाह पर घमंड हो गया।
नदी को लगा कि मुझमें इतनी ताकत है कि मैं पहाड़, मकान, पेड़, पशु, मानव आदि सभी को बहाकर ले जा सकती हूँ।
एक दिन नदी ने बड़े गर्वीले अंदाज़ में समुद्र से कहा, “बताओ मैं तुम्हारे लिए क्या-क्या लाऊँ? मकान, पशु, मानव, वृक्ष जो तुम चाहो, उसे मैं जड़ से उखाड़कर ला सकती हूँ।”
समुद्र समझ गया कि नदी को अहंकार हो गया है। उसने नदी से कहा, “यदि तुम मेरे लिए कुछ लाना ही चाहती हो, तो थोड़ी-सी घास उखाड़कर ले आओ।”
नदी ने कहा, “बस … इतनी-सी बात, अभी लेकर आती हूँ।”
मैदान से गुजरते वक़्त नदी ने अपने जल का पूरा जोर लगाया घास पर, परन्तु घास नहीं उखड़ी। नदी ने कई बार जोर लगाया, लेकिन असफलता ही हाथ लगी।
आखिर नदी हारकर समुद्र के पास पहुँची और बोली, “मैं वृक्ष, मकान, पहाड़ आदि तो उखाड़कर ला सकती हूँ। मगर जब भी घास को उखाड़ने के लिए जोर लगाती हूँ, तो वह नीचे की ओर झुक जाती है और मैं खाली हाथ ऊपर से गुजर जाती हूँ।”
समुद्र ने नदी की पूरी बात ध्यान से सुनी और मुस्कुराते हुए बोला, “जो पहाड़ और वृक्ष जैसे कठोर होते हैं, वे आसानी से उखड़ जाते है। किन्तु घास जैसी विनम्रता जिसने सीख ली हो, उसे प्रचंड आँधी-तूफान या प्रचंड वेग भी नहीं बिगाड़ सकता।”
जीवन में खुशी का अर्थ लड़ाइयाँ लड़ना नहीं, बल्कि उन से बचना है।
कुशलता पूर्वक पीछे हटना भी अपने आप में एक जीत है, क्योंकि अभिमान फरिश्तों को भी शैतान बना देता है।
और नम्रता साधारण व्यक्ति को भी फ़रिश्ता बना देती है…!
बीज की यात्रा वृक्ष तक है, नदी की यात्रा सागर तक है, और…मनुष्य की यात्रा परमात्मा तक…संसार में जो कुछ भी हो रहा है वह सब कुदरत का विधान है, हम और आप तो केवल निमित्त मात्र हैं।
इसीलिये कभी भी ये भ्रम न पालें कि…मैं न होता तो क्या होता…
“जब हम महानता की दीवार तोड़ देते हैं और खुद को ईश्वर के, मालिक के विनम्र, तुच्छ सेवक के रूप में समर्पित कर देते हैं – जब शून्य होते हुए अपनी प्रवृत्तियों को वश में करके हम उन्हें अपने अस्तित्व की पूरी जिम्मेदारी सौंप देते हैं – केवल तभी हम सच्चे अर्थ में जीवन का आनंद लेते हैं। जिसका अर्थ है – पूर्ण समर्पण।”
दाज


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