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गणेश जी को विघ्न विनायक क्यों कहते है ?

vighna vinayak ganpati

राजा शतानि ने पूछा – मुनिवर कृपया यह बताइये कि गणेश जी को विघ्न विनायक क्यों कहते है ? उनके द्वारा किसके लिए विघ्न उत्पन्न किया गया ?


सुमन्तु मुनि बोले – राजन एक बार कार्तिकेय जी ने लक्षण शास्त्र के अनुसार पुरुषो और स्त्रियों के श्रेष्ठ लक्षण की रचना की ! उस समय गणेश जी ने विघ्न उत्पन्न किया !
इस पर कार्तिकेय जी क्रुद्ध हो गए और उन्होंने गणेश जी का एक दांत उखाड़ लिया और उन्हें मारने को उद्यत हुए तभी शिव जी आ गए और उनसे उनके क्रोधित होने का कारण पूछा !
तब कार्तिकेय जी ने कहा कि पिताजी मैं पुरुषों के लक्षण बना कर स्त्रियों के लक्षण बना रहा था तभी गणेश ने विघ्न उत्पन्न किया और मैं स्त्रियों के लक्षण नहीं बना पाया !
इसी कारण मुझे क्रोध आया ! तब शिवजी ने कार्तिकेय को मनाते हुए और हसते हुए पूछा – तुम पुरुष के लक्षण को जानते हो तो बताओ मुझमे कौनसे लक्षण है ?

तब कार्तिकेय जी बोले – पिता जी आप में ऐसा लक्षण है कि संसार में आप कपाली के नाम से विख्यात होंगे !

पुत्र के इस बात को सुन शिवजी को गुस्सा आया और उन्होंने वह लक्षण ग्रन्थ को उठाकर समुन्द्र में फेंक दिया ! और स्वयं अंतर्धान हो गए !

बाद में शिवजी ने समुन्द्र को बुलाकर कहा की तुम स्त्रियों के आभूषण स्वरुप विलक्षण लक्षण की रचना करो और कार्तिकेय ने जो पुरुष लक्षण की रचना की है उसे भी कहो !

तब समुन्द्र ने कहा मेरे द्वारा जो पुरुष और स्त्री लक्षण शास्त्र कहे जायेंगे वह मेरे नाम से ही विख्यात होगा और आपने जैसा कहा मैं वैसा ही करूँगा !

और सामुन्द्रिक शास्त्र की रचना हुई!

शिवजी ने कार्तिकेय जी से कहा – कार्तिकेय इस समय जो तुमने गणेश का दाँत उखाड़ लिया है वह उसे दे दो ! यह कार्य गणेश के विघ्न के बिना संभव नहीं था ! देवयोग से ही यह कार्य सिद्ध हुआ है ! जो हुआ है वह होना ही था ! अगर तुम्हे लक्षण शास्त्र की अपेक्षा है तो समुन्द्र से ग्रहण कर लो ! परन्तु लक्षण शास्त्र का यह ग्रन्थ समुंद्र शास्त्र के नाम से ही विख्यात होगा !
गणेश को तुम दांत युक्त कर दो !

कार्तिकेय जी ने शिव जी को कहा कि पिता जी आपके कहने पर मैं इसे दांत दे तो दूंगा पर इसे हमेशा इसे धारण करना होगा क्यूंकि अगर इसने इसे धारण नहीं किया और इसे इधर उधर फेंककर घूमेगा तो फेंका हुआ दांत ही इसे भस्म कर देगा !
और कार्तिकेय जी ने दांत गणेश जी को दे दिया !

शिव जी ने दांत को धारण करने के लिए गणेश जी को मना लिया !
और आज भी शिव जी के पुत्र गणेश विघ्न विनायक को दांत को हाथ में ग्रहण किये हुए देखा जाता है !

source – bhavishya puran

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