परशुराम कुंड
एक बार चित्ररथको कई अप्सराओं के साथ विहार करते देख, हवन के लिए जल लेने गई महर्षि जमदग्नि की पत्नी रेणुका आसक्त हो कुछ देर वही रुक गई ! यहाँ हवन में देर हो जाने से और आर्य आचरण से विरक्त तथा मानसिक व्यभिचार के दंड स्वरुप, महर्षि जमदग्नि क्रुद्ध हो उन्होंने अपने पुत्रों से कहा कि वे अपनी माता का वध कर दे ! लेकिन मोह वश कोई भी ऐसा न कर सका ! तब जमदग्नि मुनि ने उन्हें श्राप दिया कि सभी की विचार शक्ति नष्ट हो जाये !
तब परशुराम जी ने अपने भाइयों की दशा देख तथा अपने पिता के तपोबल से प्रभावित हो अपनी माता का शिरोच्छेद कर दिया !
पिता जमदग्नि तब बहुत प्रसन्न हुए और आशीर्वाद मांगने को कहा तब परशुराम जी ने तीन वरदान मांगे
१ माता पुनर्जीवित हो जाये
२ उन्हें मरने की स्मृति विस्मृत हो जाये
३ सभी भाई फिर से चेतना युक्त हो जाये
तब यह तीनो वरदान परशुराम जी को जमदग्नि मुनि ने दी ! लेकिन माता की हत्या करने की वजह से परशुराम जी को मातृहत्या का पाप लगा ! जिसके कारण वश उनका फरसा उनके हाथ से चिपक गया ! तब उनके पिता ने कहा की वे जाकर अलग २ नदियों में स्नान करे, जिस समय यह मातृहत्या का पाप हटेगा उस नदी में में यह फरसा हाथ से अलग हो जायेगा !
तब परशुराम जी ने कई नदियों में स्नान किया और जहाँ उनका फरसा उनके हाथ से अलग हुआ वह परशुराम कुंड के नाम से जाना जाता है ! जो तिनसुकिया जिला अरुणांचल प्रदेश से १६५ km दूर स्थित है !













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