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मेरे पिता शक्ति को राक्षस खा गए तो मुझे बहुत क्रोध आया

parashar muni

मैत्रेय जी के पूछने पर पराशर मुनि ने कहा – हे मैत्रेय, जब मुझे पता चला कि मेरे पिता शक्ति को राक्षस खा गए तो मुझे बहुत क्रोध आया ! क्रोद्ध वश मैंने यज्ञ आरम्भ कर दिया और उस यज्ञ से जल कर राक्षसो की मृत्यु होने लगी !
तब – मेरे पितामह वशिष्ठ मुनि आये और उन्होंने मुझसे कहा कि राक्षसो का कोई दोष नहीं है, कौन किसी को मारता है ?
सब कर्मों का फल होता है ! इतना क्रोध सही नहीं है ! अपने क्रोध को त्यागों ! क्रोध से कभी किसी का अच्छा नहीं हुआ है वरण क्रोध से संचित यश और तप का नाश भी होता है ! पुरुषो को अपने कर्म भोगने ही पड़ते है !
तब उनकी यह वाणी सुन मैंने अपना यज्ञ बंद कर दिया !
तभी वहां पुलत्स्य मुनि आये और आसन ग्रहण कर बोले – तुमने अपने पितामह की बात मान कर अपने क्रोध को शांत किया जो की एक धर्म वक्ता ही जान सकता है !
मैं तुम्हे वरदान देता हूँ कि तुम पुराण सहिंता के वक्ता के साथ देवों के यथार्थ को जानने वाले होंगे !
तुम्हरी निर्मल बुद्धि मोक्ष और भोग को जानने योग्य होगी !

पितामह वशिष्ठ जी ने भी एवमस्तु कह यह सत्य होगा कहा !

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