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Chaurchan 2021: प्रकृति की पूजा है मिथिला का चौरचन, जानिये क्यों बनी कलंकित चांद पूजने की लोक परंपरा

चौठचंद्र Chaurchan चौरचन

Chaurchan 2021: प्रकृति की पूजा है मिथिला का चौरचन, दीर्घायु पुत्र के लिए महिलाएं रखेंगी व्रत, जानिये क्यों बनी कलंकित चांद पूजने की लोक परंपरा

मिथिला में आज दिखेगा चौरचन का चांद ; चौठचंद्र (चौरचन) मिथिला का एक अनोखा लोक पर्व है. भादव माह की चतुर्थी तिथि को उदय होने वाला चन्द्रमा का दर्शन दोषयुक्त है, लेकिन मिथिला में इस दिन चन्द्रमा की विधिविधान पूजन करने की विशेष परंपरा रही है.

Chauthichandra Chaurchan 2022
चौठचंद्र Chaurchan चौरचन

Chaurchan 2021 भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi) मनाई जाती है और  इसी दिन चौरचन भी मनाया जाता है. जिसमें चांद की पूजा की जाती है. यह पूजा खासकर मिथिला में मनाया जाता है जिसे चौठचंद्र (चौरचन) कहा जाता है. इस पर्व में चांद की पूजा बड़ी धूमधाम से होती है. बिहार में मिथिला के अलावा भोजपुर, सीमांचल और कोसी में मनाया जाता है. चाहे वह छठ में सूर्य की उपासना हो या चौरचन में चांद की पूजा का विधान हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. बिहार के लोगों का जीवन प्राकृतिक संसाधनों से भरा-पूरा है, उन्हें प्रकृति से जीवन के निर्वहन करने के लिए सभी चीजें मिली हुई हैं और वे लोग इसका पूरा सम्मान करते हैं. इस प्रकार यहां की संस्कृति में प्रकृति की पूजा उपासना का विशेष महत्व है और इसका अपना वैज्ञानिक आधार भी है.

Chaurchan 2021 चौठचंद्र (चौरचन) मिथिला का एक अनोखा लोक पर्व है. भादव माह की चतुर्थी तिथि को उदय होने वाला चन्द्रमा का दर्शन दोषयुक्त है, लेकिन मिथिला में इस दिन चन्द्रमा की विधिविधान पूजन करने की विशेष परंपरा रही है. मिथिला में गणेश उत्सव का शुभारंभ जहां चौरचन पर्व से होता है, वही इस उत्सव का समापन अनंत चतुदर्शी व्रत से होता है. यह पर्व मिथिला में छठ पर्व की तरह ही हर जाति हर वर्ग के लोग हर्षोल्लाष पूर्वक मानते हैं.

Chaurchan 2021 बिहार में गणेश चतुर्थी के दिन चौरचन (Chauthchandra) पर्व मानाया जाता है. कई जगहों पर इसे चौठचंद्र नाम से भी जाना जाता है. इस दिन  लोग काफी उत्साह में दिखाई देते हैं. लोग विधि-विधान के साथ चंद्रमा की पूजा करते हैं. इसके लिए घर की महिलाएं पूरा दिन व्रत करती हैं और शाम के समय चांद के साथ गणेश जी की पूजा करती हैं.

पूरे मिथिला में चौरचन का त्योहार पूरे धूमधाम से मनाया जाता है। चौरचन को चौठचंद्र भी बोलते हैं। मिथाला में मनाया जाने वाला चौठचंद्र ऐसा त्योहार जिसमें चांद की पूजा बड़े धूमधाम से की जाती है। मिथिला के अधिकांश त्योहारों का नाता प्रकृति से जुड़ा होता है।

पूरे मिथिला में चौरचन का त्योहार पूरे धूमधाम से मनाया जाता है। चौरचन को चौठचंद्र भी बोलते हैं। मिथाला में मनाया जाने वाला चौठचंद्र ऐसा त्योहार जिसमें चांद की पूजा बड़े धूमधाम से की जाती है। मिथिला के अधिकांश त्योहारों का नाता प्रकृति से जुड़ा होता है। ये व्रत पुत्र की दीर्घायु के लिए किया जाता है। रांची में बड़ी संख्या में मिथिलावासी रहते हैं। ऐसे में ये पर्व यहां भी बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।

महिलाएं करती हैं व्रत

Chaurchan 2021 चौरचन के दिन मिथिला की महिलाएं पूरे दिन व्रत करती हैं। इसके साथ ही शाम को भगवान गणेश की पूजा के साथ चांद की विधि विधान से पूजा कर अपना व्रत तोड़ती हैं। पूजा स्थल पर पिठार (पीसे चावल से) से अरिपन बनाया जाता है। फिर उसी अरिपन पर बांस से बने डाली (पथिया) में फल , पिरुकिया, टिकरी, ठेकुआ, और मिट्टी के मटकुरी में दही जमा कर पूजन सामग्री के साथ घर के सभी लोग चंद्र देव को अर्ध्य देते है। उसके बाद घर के वरिष्ठ सदस्य (पुरुष) मरर भांगते है जिसमे खीर दाल पूरी के साथ साथ फल मिठाई दही इत्यादि रहता है। फिर सभी लोग मिलके प्रसाद रूपी खीर पूरी फल मिठाई दही इत्यादि ग्रहण करते है।

Chaurchan 2021 क्या है पर्व के पीछे की कहानीः

ऐसी मान्यता है कि भाद्रपद के चौठ के दिन भगवान गणेश ने चंद्रमा को शाप दिया था। पुराणों में लिखा गया है कि चंद्रमा को अपने सुंदरता पर बड़ा घमंड था। उसने भगवान गणेश का उपहास किया। इससे गुस्सा होकर गणेश ने चांद को शाप दे दिया। उन्होंने कहा कि जो भी इस दिन चांद देखेगा उसे कलंक लगने का डर रहेगा। इस शाप से मुक्ति पाने के लिए भादो मास में के चतुर्थी तिथि के दिन चांद ने भगवान गणेश की पूजा अर्चना की। चांद को अपनी गलती का एहसास था इसलिए भगवान गणेश ने उसे वर दिया कि जो भी मेरी पूजा के साथ तुम्हारी पूजा करेगा उसे कलंक नहीं लगेगा।

पूरे मिथिला में चौरचन का त्योहार पूरे धूमधाम से मनाया जाता है। चौरचन को चौठचंद्र भी बोलते हैं। मिथाला में मनाया जाने वाला चौठचंद्र ऐसा त्योहार जिसमें चांद की पूजा बड़े धूमधाम से की जाती है। मिथिला के अधिकांश त्योहारों का नाता प्रकृति से जुड़ा होता है। ये व्रत पुत्र की दीर्घायु के लिए किया जाता है। रांची में बड़ी संख्या में मिथिलावासी रहते हैं। ऐसे में ये पर्व यहां भी बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।

प्रकृति पूजक संस्कृति रही है मिथिला की

मिथिला की संस्कृति में प्रकृति की पूजा उपासना का विशेष महत्व है और इसका अपना वैज्ञानिक आधार भी है. मिथिला की संस्कृति में सदियों से प्रकृति संरक्षण और उसके मान-सम्मान को बढ़ावा दिया जाता रहा है. मिथिला के अधिकांश पर्व-त्योहार मुख्य तौर पर प्रकृति से ही जुड़े होते हैं, चाहे वह छठ में सूर्य की उपासना हो या चौरचन में चांद की पूजा का विधान. जूड़-शीतल में जल की पूजा हो या वट-सावित्री में वृक्ष की पूजा, मिथिला के लोगों का जीवन प्राकृतिक संसाधनों से भरा-पूरा है.

अरिपन से सजता है आंगन, चांद की होती है पूजा

इस दिन मिथिलांचल के लोग काफी उत्साह में दिखायी देते हैं. लोग विधि-विधान के साथ चंद्रमा की पूजा करते हैं. इसके लिए घर की महिलाएं और पुरुष पूरे दिन व्रत करते हैं. घर के आँगन या छत पर चिकनी मिट्टी या गाय के गोबर से नीप कर पीठार से अरिपन दिया जाता है. पूरी-पकवान, फल, मिठाई, दही इत्यादि को अरिपन पर सजाया जाता है और हाथ में उठकर चंद्रमा का दर्शन कर उन्हें भोग लगाया जाता है.-

मंत्र से गूंजता है आंगन

इस मंत्र के जाप से पूरा आंगन गुंजमान हो जाता है.

सिंह प्रसेन मवधीत्सिंहो जाम्बवताहत:!

सुकुमारक मा रोदीस्तव ह्येष स्यमन्तक:!!

इस मंत्र का जाप कर प्रणाम करते हैं-

नम: शुभ्रांशवे तुभ्यं द्विजराजाय ते नम।

रोहिणीपतये तुभ्यं लक्ष्मीभ्रात्रे नमोऽस्तु ते।।

इसके उपरांत मुख्य व्रती दही को उठा ये मंत्र पढते हैं-

दिव्यशङ्ख तुषाराभं क्षीरोदार्णवसंभवम्!

नमामि शशिनं भक्त्या शंभोर्मुकुट भूषणम्!!

फिर परिवार के सभी सदस्य हाथ में फल लेकर दर्शन कर उनसे निर्दोष व कलनमुक्त होने की कामना करते हैं.

प्रार्थना मंत्र-

मृगाङ्क रोहिणीनाथ शम्भो: शिरसि भूषण।

व्रतं संपूर्णतां यातु सौभाग्यं च प्रयच्छ मे।।

रुपं देहि यशो देहि भाग्यं भगवन् देहि मे।

पुत्रोन्देहि धनन्देहि सर्वान् कामान् प्रदेहि मे।।

पकवान वितरण को माना जाता शुभ

कहते हैं कि चौरचन के दिन चन्द्रमा का दर्शन खाली हाथ नहीं करना चाहिए. यथासंभव हाथ में फल अथवा मिठाई लेकर चन्द्र दर्शन करने से मनुष्य का जीवन दोषमुक्त व कलंकमुक्त हो जाता है. इस पर्व की सबसे बड़ी विषेषता यह है कि मिथिला में आज के दिन सबके लिए पकवान खाना लगभग अनिवार्य रहता है. ऐसे में सभी लोग पकवान का वितरण करते हैं. लोग अपने टोले-मोहल्ले में सभी जाति-धर्म के लोगों के घर पकवान भेजते हैं. पकवान में सामान्यत: खीर, पूड़ी, पिरुकिया (गुझिया) और मिठाई में खाजा-लड्डू तथा फल के तौर पर केला, खीरा, शरीफा, संतरा आदि रहता है.

“उगः चाँद लपकः पूरी”

चौरचन को याद करते हुए मैथिली की साहित्यकार शेफालिका वर्मा कहती है “उगः चाँद लपकः पूरी” आज भी उत्सा्ह से भर देता है. हमारा गांव कोसी की मार झेलता गरीबों का गांव था फिर भी चौरचन के दिन सबों के घर में उत्साह रहता. ज़ितने मर्द उतने ही कलश, उतने ही दही के खोर, उतनी ही फूलों पत्तों की डलिया, खाजा, टिकरी, बालूशाही, खजूर, पिडकिया, दालपुरी खीर आदि आदि पूड़ी पकवान… पूरे आँगन में सजा के रखा जाता, उतने ही पत्तल भी केला के लगे होते, चाँद उगने के साथ ही घर की सबसे बड़ी मलकिनी काकी माँ पंडित के मन्त्र के साथ साथ एक एक सामग्री चाँद को दिखा रखती जाती थी, अंत में सारे मर्द पत्तों में खाते यानी ‘मडर भान्गते’. माँ सारे गांव को प्रसाद बांटती प्रसाद लेने वालों की लाइन लगी रहती थी.

Chaurchan 2021 मिथिला नरेश के कलंकमुक्त होने पर शुरु हुआ लोकपर्व

16वीं शताब्दी से ही मिथिला में ये लोक पर्व मनाया जा रहा है. मिथिला नरेश राजा हेमांगद ठाकुर के कलंक मुक्त होने के अवसर पर महारानी हेमलता ने कलंकित चांद को पूजने की परंपरा शुरु की, जो बाद में मिथिला का लोकपर्व बन गया.

चौरचन की शुरुआत के पीछे की कहानी यह है कि मुगल बादशाह अकबर ने तिरहुत की नेतृत्वहीनता और अराजकता को खत्म करने के लिए 1556 में महेश ठाकुर को मिथिला का राज सौंपा. बडे भाई गोपाल ठाकुर के निधन के बाद 1568 में हेमांगद ठाकुर मिथिला के राजा बने, लेकिन उन्हें राजकाज में कोई रुचि नहीं थी. उनके राजा बनने के बाद लगान वसूली में अनियमितता को लेकर दिल्ली तक शिकायत पहुंची.

राजा हेमांगद ठाकुर को दिल्ली तलब किया गया. दिल्ली का सुल्तान यह मानने को तैयार नहीं था कि कोई राजा पूरे दिन पूजा और अध्य‍यन में रमा रहेगा और लगान वसूली के लिए उसे समय ही नहीं मिलेगा. लगान छुपाने के आरोप में हेमानंद को जेल में डाल दिया गया.

कारावास में हेमांगद पूरे दिन जमीन पर गणना करते रहते थे. पहरी पूछता था तो वो चंद्रमा की चाल समझने की बात कहते थे. धीरे-धीरे यह बात फैलने लगी कि हेमांगद ठाकुर की मानसिक स्थिति ठीक नहीं है और इन्हें इलाज की जरुरत है. यह सूचना पाकर बादशाह खुद हेमांगद को देखने कारावास पहुंचे. जमीन पर अंकों और ग्रहों के चित्र देख पूछा कि आप पूरे दिन यह क्या लिखते रहते हैं. हेमांगद ने कहा कि यहां दूसरा कोई काम था नहीं सो ग्रहों की चाल गिन रहा हूं. करीब 500 साल तक लगनेवाले ग्रहणों की गणाना पूरी हो चुकी है.

बादशाह अकबर ने तत्काल हेमांगद को ताम्रपत्र और कलम उपलब्ध कराने का आदेश दिया और कहा कि अगर आपकी भविष्यवाणी सही निकली, तो आपकी सजा माफ़ कर दी जाएगी. हेमांगद ने बादशाह को माह, तारीख और समय बताया. उन्होंने चंद्रग्रहण की भविष्यवाणी की थी. उनके गणना के अनुसार चंद्रग्रहण लगा और बादशाह ने उनकी सजा माफ़ कर दी.

जेल से रिहा होने के बाद हेमांगद ठाकुर जब मिथिला आये तो महारानी हेमलता ने कहा कि आज मिथिला का चांद कलंकमुक्त हो गये हैं, हम उनका दर्शन और पूजा करेंगे. इसी मत के साथ मिथिला के लोगों ने भी अपना राज्य और अपने राजा की वापसी की ख़ुशी में चतुर्थी चन्द्र की पूजा प्रारम्भ की. आज ये मिथिला के बाहर भी मनाया जाता है और एक लोक पर्व बन चुका है.

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