तिल भांडेश्वर महादेव, काशी ………..!
भगवान शिव की नगरी काशी में कई प्रसिद्ध शिव मंदिर हैं, इनमें एक है बाबा तिल भांडेश्वर। कहते हैं यह सतयुग में प्रकट हुआ स्वयंभू शिवलिंग है। कलयुग से पहले तक यह शिवलिंग हर दिन तिल आकार में बढ़ता था। लेकिन कलयुग के आगमन पर लोगों को यह चिंता सताने लगी कि यह इसी आकार में हर दिन बढ़ता रहा तो पूरी दुनियाँ इस शिवलिंग में समा जाएगी। भगवान शिव की आराधना करने पर भगवान शिव ने प्रकट होकर साल में केवल संक्रांति पर ही इसके बढ़ने का वरदान दिया। कहते हैं उस समय से हर साल मकर संक्रांति पर इस शिवलिंग का आकार बढ़ता है।
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इस मंदिर के बारे में ऐसी मान्यता है कि यहां विशालकाय शिवलिंग हर रोज तिल के बराबर बढ़ता है, जिसके कारण से इस मंदिर को तिलभांडेश्वर के नाम से जाना जाता है। जिसका बखान शिव पुराण में भी है। वर्तमान में इस लिंग का आधार कहां है, ये तो पता नहीं पता लेकिन ज़मीन से सौ मीटर ऊंचाई पर भी यह विशाल शिवलिंग भक्तों की हर मनोकामना पूरी करता है। महाशिवरात्रि में इस जागृत शिवलिंग की आराधना का विशेष महत्व है।
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इस शिवलिंग के दर्शन से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती है। इस मंदिर के साथ अनेक मान्यताएं जुडी हैं, जिनमें से एक है विभाण्ड ऋषि के तप की। कथा के अनुसार वर्षों पहले इसी स्थान पर विभाण्ड ऋषि ने शिव को प्रसन्न करने के लिए तप किया था। इसी स्थान पर शिवलिंग के रूप में बाबा ने उन्हें दर्शन दिया था औऱ कहा था कि कलयुग में ये शिवलिंग रोज तिल के सामान बढे़गा और इसके दर्शन मात्र से मुक्ति का मार्ग प्रशस्त होगा।
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शनि ने की थी तपस्या……….
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ये शिवलिंग शनि की महादशा से पीड़ित लोगों के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि कष्टों से मुक्ति के लिए शनि ने स्वयं यहां ढाई वर्ष तपस्या की थी। यही कारण है कि शिव भक्त यहां महाशिवरात्रि में विशेष तौर पर पूजा अर्चना करते हैं। मंदिर का नाम तिल-तिल बढ़ने और शनि के तिल प्रिय होने का कारण तिलभांडेश्वर पड़ा।
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इतना विशाल शिवलिंग और उस पर जल अर्पण के साथ बेलपत्र और फूलों का श्रृंगार का महत्व है। शिव पुराण के ही अनुसार इस मंदिर में बाबा को भांग और बेल पत्र के साथ-साथ तिल और तिल का तेल चढ़ाया जाता है। मान्यता यह भी है कि जिस पर भी शनि की महादशा चलती है। वह इस मंदिर में स्थापित बाबा के शिवलिंग के साथ ही शनि का दीपक जला कर शनि के कोप से बच सकता है।
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टूटा मिला था भगवान को नापने वाला धागा………….
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इसके अलावा मंदिर में उपस्थित कुछ पुराने लोगों ने बताया कि बताया जाता है कि मुस्लिम शासन के दौरान मंदिरों को ध्वस्त करने के क्रम में तिलभांडेश्वर को भी नुकसान पहुंचाने की कोशिश की गई थी। मंदिर को तीन बार मुस्लिम शासकों ने ध्वस्त कराने के लिए सैनिकों को भेजा, लेकिन हर बार कुछ न कुछ ऐसा घट गया कि सैनिकों को मुंह की खानी पड़ी। अंगेजी शासन के दौरान एक बार ब्रिटिश अधिकारियों ने शिवलिंग के आकार में बढ़ोत्तरी को नापने के लिए उसके चारो ओर धागा बांध दिया, जो अगले दिन टूटा मिला।



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