ब्लैक और वाइट फंगस में अंतर, दोनों संक्रमण में है अलग लक्षण !
कोविड-19 महामारी के साथ दुनिया भर में कई तरह की स्वास्थ्य से जुड़ी चुनौतियां पैदा हो गई हैं। की दूसरी लहर से भारत में कहर बरपा दिया। हालांकि, अब लाखों लोग इस ख़तरनाक संक्रमण से रिकवर हो गए हैं, लेकिन दवाइयों के साइड-इफेक्ट्स और दूसरे संक्रमण से चिंता बढ़ती जा रही है।
कोविड से रिकवर हुए मरीज़ों में ब्लैक फंगस यानी म्यूकोरमायकोसिस के मामले बढ़ते नज़र आ रहे हैं। जो आमतौर पर आंखों, नाक और फिर आखिर में दिमाग़ में पहुंच जाता है, जिससे मरीज़ की मौत हो जाती है। इस संक्रमण को ब्लैक फंगस इसलिए कहते हैं क्योंकि ये शरीर के टिशूज़ को नुकसान पहुंचाता है, जो काले रंग का होता है।
व्हाइट फंगस
ब्लैक फंगस के साथ एक और संक्रमण जो चिंता का विषय बन रहा है, वो है वाइट फंगस। “ब्लैक फंगस की तरह वाइट फंगस भी कोविड-19 से ठीक हो रहे या ठीक हो चुके मरीज़ों में देखा जा रहा है। ये फंगस के मामले उन मरीज़ों में भी देखे जा रहे हैं, जिनकी इम्यूनिटी कमज़ोर है। वाइट फंगस शरीर के किसी भी हिस्से को प्रभावित कर सकता है जैसे फेफड़े, नाखून, दिमाग़, त्वचा, रक्त ।” जो कि बहुत ही घातक है ।
MSN लैब ने इलाज में उपयोगी दवा पोसाकोनाजोल को पेश किया है ।
एमएसएन लैबोरेटरीज ने शुक्रवार को ब्लैक फंगस मरीजों के इलाज में उपयोगी पोसाकोनाजोल (Posaconazole) पेश किए जाने की घोषणा की है। यह दवा फंफूदी नाशक ट्राइजोल श्रेणी की है। कंपनी की विज्ञप्ति के अनुसार एमएसएन ने पोसा वन ब्रांड नाम से 100 एमजी में टैबलेट और 300 एमजी क्षमता में इंजेक्शन पेश किए हैं। इसे ब्लैक फंगस से पीड़ित मरीजों के उपचार में उपयोगी पाया गया है।
दवा कंपनी ने कहा कि एमएसएन के फफूंदी निरोधक दवाओं के क्षेत्र में अनुसंधान और विनिर्माण क्षमता का यह नतीजा है। कंपनी ने अब अपने मजबूत वितरण नेटवर्क के जरिये इसे देश भर में मरीजों तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा है। पोसा वन को भारतीय औषधि महानियंत्रक से मंजूरी मिल गई है।



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