क्या हम जानते हैं कि हमारे लिए सबसे महत्त्वपूर्ण समय, व्यक्ति और काम कौनसा है?
तीन सवाल
एक बार एक राजा के मन में यह विचार आया कि यदि वे अपने जीवन में तीन बातों का उत्तर जान लेते हैं, तो वे कभी भी असफल नहीं होंगे।
वे तीन सवाल थे –
सबसे महत्वपूर्ण समय कौनसा है? मेरे लिए सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति कौन है? और सबसे महत्वपूर्ण काम मेरे लिए कौनसा है?
राजा ने अपने मन की जिज्ञासा को शांत करने के लिए अपने पूरे राज्य में दूत के ज़रिए यह संदेश भेजा कि राजा ने इन तीनों प्रश्नों का उत्तर देने वाले को एक बड़ी राशि देने का एलान किया है।
राजा के पास बहुत से बुद्धिमान लोग आए और उन सभी ने राजा के प्रश्नों का अलग-अलग उत्तर दिया। पहले प्रश्न के उत्तर में कुछ लोगों ने कहा कि राजा को एक समयसारिणी तैयार करनी चाहिए और फिर उसका सख्ती से पालन करना चाहिए, और केवल इस तरह से राजा अपने सारे काम उचित समय पर कर सकते हैं। लेकिन कुछ लोगों का कहना था कि कुछ कार्यों को करने का सही समय पहले से तय करना असंभव है।
कुछ ने कहा, राज्य में जो कुछ चल रहा है, उस पर राजा को पूरा ध्यान देना चाहिए। अनावश्यक सुखों से बचना चाहिए और हमेशा वही करना चाहिए जो उस समय के लिए आवश्यक लगे। कुछ लोगों का कहना था कि राजा को बुद्धिमान पुरुषों की एक परिषद की आवश्यकता है जो उन्हें उचित समय पर कार्य करने में मदद करे। ऐसा इसलिए ज़रूरी है क्योंकि एक व्यक्ति के लिए हर कार्य के लिए एक सही समय तय करना असंभव होता है।
लेकिन कुछ बुद्धिमान व्यक्तियों का कहना था कि कुछ काम बहुत ही महत्वपूर्ण होते हैं। ये काम परिषद के निर्णय की प्रतीक्षा नहीं कर सकते हैं। उनके अनुसार किसी काम को करने का सही समय तय करने के लिए, उस काम से भविष्य में होने वाले प्रभाव को देखना ज़रूरी है और केवल जादूगर ही ऐसा कर सकता है। इसलिए राजा को जादूगरों के पास जाना चाहिए।
दूसरे प्रश्न के उत्तर में, कुछ लोगों ने कहा कि राजा के लिए सबसे आवश्यक लोग उसके पार्षद हैं। कुछ ने कहा, पुजारी। कुछ अन्य लोगों ने चिकित्सकों या फिर सैनिकों को चुना।
तीसरे प्रश्न का उत्तर कुछ लोगों के अनुसार विज्ञान था, तो कुछ लोगों के अनुसार लड़ाई या फिर धार्मिक पूजा था।
राजा के सभी प्रश्नों के उत्तर लोगों ने बहुत ही भिन्न-भिन्न दिए थे और राजा किसी भी उत्तर से संतुष्ट नहीं थे। इस कारण से उन्होंने किसी को भी पुरस्कृत नहीं किया।
अब उन्होंने एक विद्वान साधु से सलाह लेने का फैसला किया, जो अपने ज्ञान के लिए दूर तक जाने जाते थे। साधु एक झोपड़ी में रहते थे। वे केवल साधारण लोगों से ही मिलते थे। इसलिए राजा ने एक साधारण व्यक्ति की वेशभूषा धारण की और अपने घोड़े को अपने अंगरक्षक के साथ सन्यासी की कुटिया से थोड़ी दूरी पर छोड़कर, अकेले ही साधारण कपड़ों में सन्यासी की कुटिया तक पहुँचे।
जैसे ही राजा सन्यासी की कुटिया के पास पहुँचे, उन्होंने देखा कि सन्यासी अपनी कुटिया के सामने ज़मीन खोद रहे हैं। उन्होंने राजा का अभिवादन किया और खुदाई जारी रखी। साधु बूढ़े और कमज़ोर थे और जैसे ही उन्होंने थोड़ी देर काम किया, उनकी साँसे ज़ोर से चलने लगीं। राजा ने जब साधु को हांफते हुए देखा तो वह साधु के पास गये और कहा, “हे साधु, मैं आपके पास तीन प्रश्नों के उत्तर लेने के लिए आया हूँ।
सबसे महत्वपूर्ण समय कौनसा है? सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति कौन है? और सबसे महत्वपूर्ण काम कौनसा है?“
साधु ने राजा की बात सुनी, परन्तु बिना कुछ बोले खुदाई का काम करते रहे। “आप थक गए होंगे। मुझे कुल्हाड़ी दे दें और आप आराम से थोड़ी देर बैठ जाएँ और मुझे आपके स्थान पर काम करने दें।” राजा ने कहा। “धन्यवाद,” साधु ने राजा को अपनी कुल्हाड़ी देते हुए कहा और फिर वे आराम से बैठ गये।
राजा ने दो ख़ड्डे खोदने के बाद अपने प्रश्नों को फ़िर से पूछा। सन्यासी ने कोई उत्तर नहीं दिया। और खड़े होकर कुल्हाड़ी के लिये हाथ बढ़ाकर कहा, “अब तुम विश्राम करो और मुझे काम करने दो।” लेकिन राजा ने उन्हें कुल्हाड़ी नहीं दी और फिर से खोदना प्रारंभ कर दिया।
राजा पूरे दिनभर खोदने का काम करते रहे। धीरे-धीरे सूरज पेड़ों के पीछे छिपने लगा और कुछ समय बाद राजा ने भी कुल्हाड़ी को ज़मीन पर रख दिया और साधु से फिर कहा, “हे ज्ञानी, मैं अपने प्रश्नों के उत्तर लेने आपके पास आया था। अगर आप मुझे कोई जवाब नहीं दे सकते हैं, तो मुझे बताएं, मैं घर लौट जाऊँगा।”
“यहाँ कोई दौड़ता हुआ आ रहा हैं।” साधु ने कहा। राजा ने मुड़कर देखा कि एक दाढ़ी वाला आदमी उनकी तरफ़ दौड़ता हुआ आ रहा था। उस व्यक्ति का हाथ उसके पेट पर था और वहाँ से खून बह रहा था। राजा के पास पहुँचते ही वह मूर्छित होकर भूमि पर गिर पड़ा।
राजा और साधु ने उस आदमी के कपड़े उतारे और देखा कि उसके पेट में एक बड़ा घाव है। राजा ने उस घाव को साफ़ करके, उस घाव को अपने रूमाल से ढक दिया, लेकिन खून बहना बंद नहीं हुआ। राजा ने घाव को फिर से साफ़ किया और वे ऐसा तब
तक करते रहे जब तक कि खून बहना बंद नहीं हो गया।
कुछ समय बाद उस आदमी को अच्छा लगने लगा और उसने कुछ पीने की इच्छा ज़ाहिर की। राजा ने उस व्यक्ति को ताज़ा पानी पीने को दिया। तब तक सूरज पूरी तरह से डूब चुका था और हवा में भी बहुत ठंडक आ गई थी। राजा ने साधु की सहायता से घायल व्यक्ति को कुटिया में ले जाकर बिस्तर पर लिटा दिया। वह आदमी आँखें बंद करके आराम करने लगा।
राजा भी खुदाई करते-करते बहुत थक गये थे और वे भी फ़र्श पर लेट गये और बहुत गहरी नींद सो गये। उठने के कुछ समय बाद ही उन्हें एहसास हुआ कि वे कहाँ हैं और बिस्तर पर कोई दाढ़ी वाला आदमी लेटा है।
“मुझे माफ़ कर दो।” जब उस दाढ़ी वाले आदमी ने राजा को जगा हुआ देखा तो कमज़ोर आवाज में कहा।
राजा ने कहा, “मैं तुम्हें नहीं जानता और मेरे पास तुम्हें क्षमा करने के लिए कोई वजह भी नहीं है।”
दाढ़ी वाले व्यक्ति ने कहा, “आप मुझे नहीं जानते, लेकिन मैं आपको बहुत अच्छे से जानता हूँ। मैं आपका वह शत्रु हूँ, जिसने आपसे बदला लेने की शपथ खाई थी, क्योंकि आपने मेरे भाई को मार डाला था और मेरी संपत्ति पर कब्ज़ा कर लिया था। मुझे पता चला था कि आप साधु से मिलने के लिए अकेले गए हैं और मैंने मन ही मन आपको मारने का मन बना लिया। लेकिन जब पूरा दिन बीत गया और आप वापस नहीं आये तब जहाँ मैं छुपा था वहाँ से बाहर निकला, और आपके अंगरक्षक ने मुझे पहचान लिया और मुझ पर हमला कर के घायल कर दिया। लेकिन मैं किसी तरह उस अंगरक्षक से बच कर भाग कर इधर आ गया। लेकिन मुझे मर जाना चाहिए था, क्योंकि मैं आपको मारना चाहता था और आपने ही मेरी जान बचाई। अब जब तक मैं जीवित हूँ, मैं आपका विश्वासी दास बन कर आपकी सेवा करूँगा और अपने पुत्रों को भी वैसा ही करने की आज्ञा दूँगा। मुझे माफ़ कर दो!”
राजा अपने शत्रु के मन से अपने प्रति दुश्मनी की भावनाओं को खत्म करके, और उसे एक सच्चे मित्र के रूप में पाकर बहुत खुश थे। राजा ने न केवल उसे माफ़ किया, बल्कि कहा कि वे अपने सेवकों और अपने वैद्य को उसकी देखभाल के लिए भेजेंगे। उन्होंने उस आदमी को संपत्ति वापस देने का भी वादा किया।
घायल व्यक्ति को कुटिया में छोड़कर, राजा कुटिया से बाहर चले आए और साधु के लिए चारों ओर देखने लगे। क्योंकि जाने से पहले वे एक बार फिर अपने सवालों के जवाब साधु से पूछना चाहते थे। साधु अपने घुटनों के बल बैठ कर उन खड्डों में बीज बो रहे थे जो एक दिन पहले खोदे गए थे। राजा साधु के पास गये और कहा, “आखिरी बार मैं आपसे अपने सवालों का जवाब देने के लिए विनती करता हूँ, गुरुदेव।”
“आपको आपके सवालों का उत्तर पहले ही दिया जा चुका है!” साधु ने कहा। फिर उन्होंने धीरे से राजा कि ओर देखा। “मुझे कैसे उत्तर दिया गया है? मैं समझा नहीं!!” राजा ने पूछा।
“क्या आपको कुछ भी समझ नहीं आ रहा है?” साधु ने उत्तर दिया। “यदि आपने कल मेरी दुर्बलता पर दया न की होती और मेरे लिए ये ख़ड्डे नहीं खोदे होते, तो आप यहाँ से चले गए होते और तब वह आदमी आप पर हमला कर देता। तो सबसे महत्त्वपूर्ण समय वह था जब आप खड्डा खोद रहे थे। और मैं सबसे महत्त्वपूर्ण व्यक्ति था, और मेरा भला करना आपका सबसे महत्त्वपूर्ण काम था।
बाद में, जब वह आदमी हमारे पास दौड़ता हुआ आया था, उस समय सबसे महत्त्वपूर्ण समय वह था जब आप उसकी देखभाल कर रहे थे, क्योंकि अगर आपने उसके घावों को भरा नहीं होता, तो वह आपके साथ एक अच्छा संबंध बनाए बिना ही मर जाता। तो उस समय वह सबसे महत्त्वपूर्ण व्यक्ति था, और आपने उसके लिए जो किया वह आपका सबसे महत्त्वपूर्ण काम था।”
“याद रखें, केवल एक ही समय महत्त्वपूर्ण है और वह समय वर्तमान समय है, जब हमारे पास कुछ कार्य करने की क्षमता होती है।”
“सबसे महत्त्वपूर्ण व्यक्ति वह है, जिसके साथ किसी क्षण में आप हैं, क्योंकि कोई नहीं जानता कि भविष्य में क्या होगा और हम कभी किसी और से मिल पाएंगें या नहीं। सबसे महत्त्वपूर्ण काम उस क्षण उस व्यक्ति के साथ कुछ अच्छा करना है, क्योंकि हमें इस दुनिया में इसी उद्देश्य के लिए भेजा गया है।”
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“हार्टफुलनेस पद्धति में ध्यान के माध्यम से चेतना का विस्तार और अस्तित्व का दिव्यीकरण होता है। जैसे-जैसे हमारी चेतना का विस्तार होता है, जीवन के सभी पहलुओं में हृदय से मार्गदर्शन मिलना प्रारंभ हो जाता है।”
दाजी