पढ़ने से पहले… धीरे से अपनी आँखे बंद करे… अपनी हृदय की गहराई में उतरे… एक बार विचार करे की वास्तविकता में मैं कौन हूँ, मेरी पहचान किससे हैं…….धीरे से अपनी आँखे खोले, पढ़ना जारी रखें…
दुख
शहर का सबसे ख़ूबसूरत, आलीशान घर!
कोई भी उसे देखता, तो उसकी तारीफ़ किये बिना नहीं रह पाता।
एक बार घर का मालिक किसी काम से कुछ दिनों के लिए शहर से बाहर चला गया। कुछ दिनों बाद जब वह वापस लौटा, तो देखा कि उसके मकान से धुआं उठ रहा है। करीब जाने पर उसे घर से आग की लपटें उठती हुई दिखाई पड़ी। उसका ख़ूबसूरत घर जल रहा था। वहाँ तमाशबीनों की भीड़ जमा थी, जो उस घर के जलने का तमाशा देख रही थी।
अपने ख़ूबसूरत घर को अपनी ही आँखों के सामने जलता हुए देख वह व्यक्ति चिंता में पड़ गया। उसे समझ नहीं आ रहा था कि अब क्या करे? कैसे अपने घर को जलने से बचाये? वह लोगों से मदद की गुहार लगाने लगा कि वे किसी भी तरह उसके घर को जलने से बचा लें।
उसी समय उसका बड़ा बेटा वहाँ आया और बोला, “पिताजी, घबराइए मत। सब ठीक हो जायेगा।”
इस बात पर कुछ नाराज़ होते हुए पिता बोले, “कैसे न घबराऊँ? मेरा इतना ख़ूबसूरत घर जल रहा है।”
बेटे ने उत्तर दिया, “पिताजी, माफ़ कीजियेगा। एक बात मैं आपको अब तक बता नहीं पाया था। कुछ दिनों पहले मुझे इस घर के लिए एक बहुत बढ़िया खरीददार मिला था। उसने मेरे सामने मकान की कीमत की 3 गुनी रकम का प्रस्ताव रखा। सौदा इतना अच्छा था कि मैं इंकार नहीं कर पाया और मैंने आपको बिना बताये सौदा तय कर लिया।”
ये सुनकर पिता की जान में जान आई। उन्होंने राहत की सांस ली और आराम से खड़े हो गए, जैसे सब कुछ ठीक हो गया हो। अब वह भी अन्य लोगों की तरह तमाशबीन बनकर उस घर को जलते हुए देखने लगे।
तभी उसका दूसरा बेटा आया और बोला, “पिताजी हमारा घर जल रहा है और आप हैं कि बड़े आराम से यहाँ खड़े होकर इस जलते हुए घर को देख रहे हैं। आप कुछ करते क्यों नहीं?”
“बेटा चिंता की बात नहीं है। तुम्हारे बड़े भाई ने ये घर बहुत अच्छे दाम पर बेच दिया है। अब ये हमारा नहीं रहा। इसलिए अब कोई फ़र्क नहीं पड़ता।” पिता बोले।
“पिताजी भैया ने सौदा तो कर दिया था। लेकिन अब तक सौदा पक्का नहीं हुआ है। अभी हमें पैसे भी नहीं मिले हैं। अब बताइए, इस जलते हुए घर के लिए कौन पैसे देगा?”
यह सुनकर पिता फिर से चिंतित हो गए और सोचने लगे कि कैसे आग की लपटों पर काबू पाया जाए। वह फिर से पास खड़े लोगों से मदद की गुहार लगाने लगे।
तभी उनका तीसरा बेटा आया और बोला, “पिताजी घबराने की सच में कोई बात नहीं है। मैं अभी उस आदमी से मिलकर आ रहा हूँ, जिससे बड़े भाई ने मकान का सौदा किया था। उसने कहा है कि मैं अपनी जुबान का पक्का हूँ। मेरे आदर्श कहते हैं कि चाहे जो भी हो जाये, अपनी जुबान पर कायम रहना चाहिए इसलिए अब जो हो जाये, जबान दी है, तो घर ज़रूर लूँगा और उसके पैसे भी दूंगा।”
पिता फिर से चिंतामुक्त हो गए और घर को जलते हुए देखने लगे।
तो दोस्तों, एक ही परिस्थिति में व्यक्ति का व्यवहार भिन्न-भिन्न हो सकता है और यह व्यवहार उसकी सोच के कारण होता है। उदाहारण के लिए जलते हुए घर के मालिक को ही ले लिजिए। घर तो वही था, जो जल रहा था। लेकिन उसके मालिक की सोच में कई बार परिवर्तन आया और उस सोच के साथ उसका व्यवहार भी बदलता गया।
असल में, जब हम किसी चीज़ से जुड़ जाते हैं, तो उसके छिन जाने पर या दूर जाने पर हमें दुःख होता है। लेकिन यदि हम किसी चीज़ को खुद से अलग कर देखते हैं, तो एक अलग-सी आज़ादी महसूस करते हैं और दु:ख हमें छू तक नहीं पता है। इसलिए दु:खी होना और ना होना पूर्णतः हमारी सोच और मानसिकता (mindset) पर निर्भर करता है। सोच पर नियंत्रण रखकर या उसे सही दिशा देकर हम बहुत से दु:खों और परेशानियों से न सिर्फ बच सकते हैं, बल्कि जीवन में नई ऊँचाइयाँ भी प्राप्त कर सकते हैं।
“चीजों के साथ हमारा अनावश्यक लगाव हमारे दु:खो का कारण बन जाता है।”
“दाजी”