पढ़ने से पहले…धीरे से अपनी आँखें बंद करें…मुस्कुराइए… और अब अपने आपको अपने उच्च स्व के साथ एक होता हुआ महसूस करें।

श्रद्धा का फूल

एक बार किसी गांव में एक बडे संत महात्मा का अपने शिष्यो सहित आगमन हुआ। सब इस होड़ में लग गये कि क्या भेंट करें।
इधर गाँव में एक गरीब जूते सिलने वाला था। उसने देखा कि उसके घर के बाहर के तालाब में बेमौसम का एक कमल खिला है।

उसकी इच्छा हुई कि, आज नगर में महात्मा आए हैं, सब लोग तो उधर ही गए हैं, आज हमारा काम चलेगा नहीं, क्यों न आज यह फूल बेचकर ही गुजारा कर लें।
वह तालाब के अंदर कीचड़ में घुस गया। कमल के फूल को लेकर आया। केले के पत्ते का दोना बनाया और उसके अंदर कमल का फूल रख दिया।

पानी की कुछ बूंदें कमल पर पड़ी हुई थी और वह बहुत सुंदर दिखाई दे रहा था।

इतनी देर में एक सेठ पास आया और आते ही कहा-”क्यों फूल बेचने की इच्छा है? आज हम आपको इसके दो चांदी के रूपए दे सकते हैं।”

अब उसने सोचा कि एक-दो आने का फूल! इसके दो रुपए दिए जा रहे हैं। वह आश्चर्य में पड़ गया।

इतनी देर में नगर-सेठ आया । उसने कहा ”भाई, फूल बहुत अच्छा है, यह फूल हमें दे दो हम इसके दस चांदी के सिक्के दे सकते हैं।”

मोची ने सोचा, इतना कीमती है यह फूल। नगर सेठ ने मोची को सोच मे पड़े देख कर कहा कि अगर पैसे कम हों, तो ज्यादा दिए जा सकते हैं।

गरीब आदमी ने सोचा-क्या बहुत कीमती है ये फूल?

नगर सेठ ने कहा- “मेरी इच्छा है कि मैं महात्मा के चरणों में यह फूल रखूं। इसलिए इसकी कीमत लगाने लगा हूँ।”

इतनी देर में उस राज्य का मंत्री अपने वाहन पर बैठा हुआ पास आ गया और कहता है- “क्या बात है? कैसी भीड़ लगी हुई है?”
अब लोग कुछ बताते इससे पहले ही उसका ध्यान उस फूल की तरफ गया। उसने पूछा- “यह फूल बेचोगे?

हम इस के सौ सिक्के दे सकते हैं। क्योंकि महात्मा आए हुए हैं। ये सिक्के तो कोई कीमत नहीं रखते।

जब हम यह फूल लेकर जाएंगे तो सारे गांव में चर्चा तो होगी कि महात्मा ने केवल मंत्री का भेंट किया हुआ ही फूल स्वीकार किया। हमारी बहुत ज्यादा चर्चा होगी।इसलिए मेरी इच्छा है कि यह फूल मैं भेंट करू।”

और थोड़ी देर के बाद राजा ने भीड़ को देखा, देखने के बाद वजीर ने पूछा कि बात क्या है? वजीर ने बताया कि फूल का सौदा चल रहा है।

राजा ने देखते ही कहा- “इसको हमारी तरफ से एक हजार चांदी के सिक्के भेंट करना। यह फूल हम लेना चाहते हैं।”

गरीब आदमी ने कहा- “लोगे तो तभी जब हम बेचेंगे। हम बेचना ही नहीं चाहते। तब राजा ने कहा कि बेचोगे क्यों नहीं?”

उसने कहा कि जब महात्मा के चरणों में सब कुछ-न-कुछ भेंट करने के लिए पहुँच रहे हैं तो ये फूल इस गरीब की तरफ से आज उनके चरणों में भेंट होगा।

राजा बोला- “देख लो, एक हजार चांदी के सिक्कों से तुम्हारी पीढ़ियां तर सकती हैं।”

गरीब आदमी ने कहा- “मैंने तो आज तक राजाओं की सम्पत्ति से किसी को तरते नहीं देखा लेकिन महान पुरुषों के आशीर्वाद से तो लोगों को जरूर तरते देखा है।”

राजा मुस्कुराया और कह उठा- “तेरी बात में दम है। तेरी मर्जी, तू ही भेंट कर ले।”

अब राजा तो उस उद्यान में चला गया जहाँ महात्मा ठहरे हुए थे और बहुत जल्दी चर्चा महात्मा के कानों तक भी पहुँच गई, कि आज कोई आदमी फूल लेकर आ रहा है। जिसकी कीमत बहुत लगी है। वह गरीब आदमी है इसलिए फूल बेचने निकला था जिससे कि उसका गुजारा होता।

जैसे ही वह गरीब आदमी फूल लेकर पहुँचा तो शिष्यों ने महात्मा से कहा कि वह व्यक्ति आ गया है।

लोग एकदम सामने से हट गए। महात्मा ने उसकी तरफ देखा। वह गरीब आदमी फूल लेकर जैसे पहुँचा तो उसकी आंखों से आंसू बहने लगे। कुछ बूंदे तो पानी की कमल पर पहले से ही थी और कुछ उसके आंसुओं के रूप में ठिठक गई कमल पर।

रोते हुए उसने कहा- “सब ने बहुत-बहुत कीमती चीजेें आपके चरणों में भेंट की होंगी, लेकिन इस गरीब के पास यह कमल का फूल और जन्म-जन्मान्तरों के पाप, जो पाप मैंने किए हैं आँसुओ के रूप मे आंखों में भरे पड़े हैं। उनको आज आपके चरणों में चढ़ाने आया हूं। मेरा ये फूल और मेरे ये आँसू स्वीकार करें।

महात्मा के चरणों में फूल रख दिया और घुटनों के बल बैठ गया।

संत महात्मा ने अपने शिष्य आनन्द को बुलाया और कहा, “देख रहे हो आनन्द! हजारों साल में भी कोई राजा इतना नहीं कमा पाया जितना इस गरीब इन्सान ने आज एक पल में ही कमा लिया।”

इसका समर्पण श्रेष्ठ हो गया। इसने अपने मन का भाव दे दिया।

एकमात्र ये मन का भाव ही है जिससे हम ईश्वर की कृपा प्राप्त कर सकते हैं उसकी कृपा के आगे और कुछ भी अहमियत नहीं रखता।

*"जब हमारे सभी भाव संयमित हो जाते हैं तब शान्ति छा जाती है और इच्छाएँ होते हुए भी हम इच्छाविहीनता की अवस्था प्राप्त कर लेते हैं।"* 

लालाजी