
कौन है सच्चा गुरु?
अनुकरणीय जीवन शैली
जिस दिन मैंने अपनी स्नातकोत्तर डिग्री प्राप्त की, उसके बाद मैंने एक मिनट भी बर्बाद नहीं किया, मैं शिक्षक बनने के लिए अपने गाँव, बंगाल के औसग्राम वापस चला गया। हाँ, मेरे पास बड़े शहरों के स्कूलों से अधिक वेतन के प्रस्ताव थे, लेकिन मेरे लिए वह 169 रु वेतन का प्रस्ताव जो मुझे मेरे गाँव के स्कूल द्वारा दिया गया था, सबसे ज़्यादा महत्त्वपूर्ण था। मैं अपने गाँव के उन छात्रों को पढ़ाने के लिए बहुत ही उत्सुक था, जिन्हें एक अच्छे शिक्षक की सबसे ज्यादा जरूरत थी।
मैंने अपने स्कूल में 39 साल तक पढ़ाया और उसके बाद मैं 60 वर्ष की आयु में सेवानिवृत्त हो गया। पर मेरा मन बहुत ही बेचैन था, मैं सेवानिवृत्त नहीं होना चाहता था और मैं अपने आप से बार-बार पूछता, “अब मैं क्या करूँ?” कुछ ही दिनों बाद, मुझे मेरे सवाल का जवाब मिल गया।
एक सुबह, लगभग 6:30 बजे, मैंने देखा कि 3 लड़कियाँ मेरे घर की तरफ आ रही हैं। मैं ये सुनकर चौंक गया जब उन्होंने मुझसे कहा कि वे उस मास्टर को देखने के लिए 23 किलोमीटर से अधिक साइकिल चला कर आई है जो कि अब सेवानिवृत्त हो चुके थे! वे युवा आदिवासी लड़कियाँ थीं, जो पढ़ने और कुछ सीखने के लिए बेचैन थीं। उन्होंने हाथ जोड़कर पूछा, “मास्टरजी, क्या आप हमें पढ़ाएंगे?” मैं तुरंत मान गया और कहा, “मैं तुम्हें पढ़ा सकता हूँ, लेकिन तुम्हें मेरे स्कूल की पूरे साल की फीस देनी होगी। क्या तुम देने के लिए तैयार हो?”
उन लड़कियों ने तुरंत जबाव दिया, “हाँ, मास्टरजी, हम किसी भी तरह पैसे का प्रबंध कर लेंगे।”
तो मैंने कहा, “ठीक है, मेरी पूरे साल की फीस 1 रुपया है।” य़ह सुनकर वे आदिवासी लड़कियाँ इतनी खुश हो गई और उन्होंने मुझे अपने गले लगा लिया और कहा, “मास्टर जी, हम आपको 1 रुपया और उसके साथ 4 चॉकलेट भी देंगे।”
मुझे ऐसा लग रहा था कि मुझे फिर से जीने का एक मकसद मिल गया हैं, इसलिए उनके जाने के बाद, मैं अपने कपड़े बदल कर सीधे अपने स्कूल चला गया और प्रधानाचार्य से उन आदिवासी लड़कियों को पढ़ाने के लिए एक कमरा देने का अनुरोध किया… प्रधानाचार्य ने मेरी सहायता करने से इन्कार कर दिया। लेकिन अब मैं रुकने वाला नहीं था। 39 साल पढ़ाने के बाद भी मेरे अंदर पढ़ाने की बहुत ऊर्जा बाकी थी। इसलिए घर वापस आने के बाद मैने अपना बरामदा साफ किया और वहाँ पढ़ाना शुरू करने का फैसला किया।
य़ह बात 2004 की है। मेरी पाठशाला उन 3 लड़कियों के साथ शुरू हुई थी और आज हमारे पास प्रति वर्ष 350 छात्र आते हैं, जिनमें से अधिकांश युवा आदिवासी लड़कियाँ हैं। मेरे ही पाठशाला के बच्चों द्वारा आग्रह करने पर मैंने अपनी पाठशाला की फीस 1 रुपये बढ़ा दी है।
मेरा दिन अभी भी सुबह 6 बजे गाँव में घूमने के साथ शुरू होता है और फिर मैं अपने घर के दरवाजे आने वाले छात्रों के लिए खोल देता हूँ-कुछ लड़कियाँ 20 किलोमीटर से भी अधिक दूरी तक चल कर के पढ़ने आती हैं। मुझे हमेशा उन आदिवासी लड़कियों को देख कर लगता है कि मुझे उनसे बहुत कुछ सीखना है।
इन वर्षों में, मेरे छात्र प्रोफेसर, कई विभागों के प्रमुख और आई टी कम्पनियों में इंजीनियर बन गए हैं…वे हमेशा मुझे फोन करते हैं और मुझे अपनी सफ़लता की खुशखबरी देते हैं और हमेशा की तरह, मैं उनसे कुछ चॉकलेट देने के लिए कहता हूँ और जिस दिन मुझे पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया, उस दिन मेरा फोन बजना बंद ही नहीं हुआ। पूरे गाँव ने मेरे साथ जश्न मनाया। यह सब के लिए एक खुशी का दिन था, लेकिन उस दिन भी मैंने अपने छात्रों को अपनी पाठशाला से छुट्टी नहीं करने दी।
मेरी पाठशाला के द्वार सभी के लिए खुले हैं- कभी भी कोई भी मेरी पाठशाला में आ सकता है। हमारा गाँव बहुत ही सुंदर है और मेरे सभी छात्रों का भविष्य उज्ज्वल है… मुझे पूरा यकीन है कि हम सभी उनसे बहुत कुछ सीख सकते हैं।
तो यह मेरी कहानी है- मैं बंगाल का एक साधारण शिक्षक हूँ, जो अपनी चारपाई पर चाय और शाम की झपकी का आनंद लेता हूँ। मेरे जीवन का मुख्य आकर्षण य़ह है कि मुझे मास्टर मोशाई कहा जाता है… मैं अपनी आखिरी साँस तक पढ़ाना चाहता हूँ। यह वही काम है जिसे करने के लिए मुझे इस दुनिया में भेजा गया है।
प्रतिबिंब
यह एक आदर्श व्यक्तित्व वाले निस्वार्थ शिक्षक श्री सुजीत चट्टोपाध्याय की कहानी है। वे 77 वर्षीय ग्रामीण स्कूल शिक्षक, जो ‘मास्टर मोशाई’ के नाम से लोकप्रिय हैं, शिक्षा के प्रसार के लिए दशकों से अथक प्रयास कर रहे हैं, खासकर आदिवासी छात्रों की शिक्षा के लिए। उन्हें नवंबर, 2021 में पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। इन्होंने देश के उज्ज्वल भविष्य के लिए आदर्श नागरिकों को तैयार करने में अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया है। उनकी असाधारण सत्यनिष्ठा और सहिष्णुता को देश नमन करता है। ये भारत के वे गुमनाम नायक हैं जिनके प्रयासों की देश भर में सराहना की जानी चाहिए।
इस दुनिया में ऐसे बहुत से गुमनाम नायक हैं जिन्होंने अपना जीवन दूसरों के लिए समर्पित कर दिया है और बिना किसी स्वार्थ या अपेक्षा से समाज सेवा कर रहे हैं। इस संसार को अधिक करुणामयी और खूबसूरत बनाने के लिए आज ऐसे लोगों की बहुत जरूरत है। बस हमें जरूरत है उन्हें पहचानने की और जब हम उन्हें खुले हृदय और खुले मन से ढूँढने की कोशिश करेंगे तो हम उन्हें अपने सामने ही पाएगें।
*"एक सच्चा गुरु शिष्य से कभी कुछ नहीं मांगता, वास्तव में गुरु केवल मानवता की सेवा करने के लिए होते हैं। वे लेने के लिए नहीं बल्कि केवल देने के लिए होते हैं।"*_
दाजी