टिकट वितरण में सपा को बहाने पड़ेंगे तगड़ा पसीना नेताओ का समायोजन अखिलेश के लिए बनेगा बड़ा सिरदर्द

कैसे संतुष्ठ कर पाएंगे , अपनो को अखिलेश,
सपा में बाहर से आने वाले नेताओं को सम्मान जनक सीट पर समीकरण बनाने के चक्कर मे कही अपने न रूठ जाए….

प्रतापगढ़ से अजयपाण्डेय पत्रकार की विशेष रिपोर्ट

जैसा कि हर आम चुनाव में यह देखने को मिलता है कि चुनाव की तिथियां नजदीक आते-आते एक दूसरे पार्टियों से बड़े छोटे नेताओं की भगदड़ मच जाती है और अवसरवादी तथा सत्ता.के लोभी नेताओं द्वारा जिस तरह से अपने नए ठिकाने तलाशने के लिए एक दूसरे पार्टियों में भागमभाग मच जाती है उसी तरह इस बार के 2022 के विधानसभा चुनाव को लेकर अभी से ठंड में भी बड़े बड़े सूरमाओं के माथे पर पसीना झलक रहा है, और राजनीतिक उमस को बढ़ा दिया है जहां सत्ताधारी पार्टी भाजपा से टिकतकटने की संभावित भनक लगते ही व अपनो का हित न साध पाने से कुछ मंत्री नेता व विधायक अपने नए ठिकाने की तलाश में भाजपा छोड़कर अन्य दलों में पैठ बनाने को बेकरार है वही सत्ताधारी पार्टी में भी कई अन्य दलों से नेता अपने ठिकाना जमाने के लिए भागमभाग मचा चुके हैं अब देखना यह है कि इन सियासी जदा नेताओं को जो पूरी तरह से अवसरवादी होते हुऐ जनता को गुमराह कर सिर्फ और सिर्फ अपनेनिजी लाभ के लिए जनता को व समाज की राय लिए बिना पर दल बदल कर जाते है, तो यह वर्तमान राजनीतिक माहौल में उनकी शायद बहुत बड़ी भूल है, आज और तब की राजनीति में जमीन आसमान का अंतर आ चुका है, पहले 70 ,80 के दशक में नेता जनता के वीच में अपनी जाति विरादरी का हितेषी होने व उनके सुख दुख में शरीक होकर उनके विरादरी के नेता बनते थे ,आज ठीक उलटा हो चुका है, इन कथित विरादरी के नेताओं की घडियाली आंसू के बहकावे में अब आधुनिक समाज के पढ़े लिखे लोग कदापि नही आने वाले, इसलिए कि चुनाव तक हमदर्दी जताने,व उसके बादकार्यसिद्ध होने पर मंत्री पद पाकर सिर्फ और सिर्फ अपने परिवार व रिस्तेदारो को लाभ पहुँचाने तक ही सीमित रहने वालों की असलियत जनता व समाज जान चुका है, जनता विकास व देश हित को तरजीह देने लगी है, जिस तरह से कोरोना जैसी महामारी पर सरकार ने आम जन के हितों का ध्यान रखकर लोगोकी बुनियादी सुविधाओं का ध्यान रखा ,जनता उसको कदापि नकार नही सकती है।,ऐसे में जनता समाज को नही बल्कि देश व स्व हित केलिए अब स्वयं निर्णय लेने में समर्थ हो चुकी है अभी एक जाति के मंत्री ने सर्व समाज का दंब भरने का नाटक करते रहे है लेकिन अपने पुत्रों व रिस्तेदारो को टिकट न मिलने की भनक लगते ही सत्ता का गुड़गान करने ववाले मंत्री जी तुरन्त पार्टी से मोहभंग कर नए पैतरे बाजी मार दिए जैसा कि विदित है जब से राजनीति में आये है ऐसा करते है, सता में जाने के बाद सीधे मुह किसी से बात नही करते सिर्फ परिवार व रिस्तेदारो तक ही सीमित हो जाते है हाँ चुनाव आते ही यदि उनका हित सिद्ध नही हो रहा है तो वे तुरन्त पार्टी बदलने से बाज नही आते है इसको पूरी पार्टी व समाज जान चुका है।।
ऐसे में सपा की ओर जाने का मन बना चुके व जा चुके अब तक सेकड़ो नेताओ का समायोजन और
उत्तर प्रदेश की सियासी जंग जीतने और सत्ता में वापसी के लिए सपा प्रमुख अखिलेश यादव तमाम छोटे दलों के गठबंधन करने के साथ-साथ दूसरे दलों के दिग्गज नेताओं के अपने साथ मिलाने में जुटे हैं. पिछले चार महीने में बसपा, बीजेपी और कांग्रेस सहित कई दलों से करीब 100 से ज्यादा नेताओं ने सपा का दामन थामा है. दूसरे दलों के नेताओं के आने से सपा के पक्ष में जरूर माहौल बना है, लेकिन कई सीटों का सियासी समीकरण गड़बड़ा गया है. ऐसे में कैंडिडेट कलेक्शन अखिलेश यादव के लिए सिरदर्द भी बढ़ा रहा है. ।

टिकट वितरण में सपा को बहाने पड़ेंगे तगड़ा पसीना नेताओ का समायोजन अखिलेश के लिए बनेगा बड़ा सिरदर्द
कैसे संतुष्ठ कर पाएंगे , अपनो को अखिलेश,सपा में बाहर से आने वाले नेताओं को सम्मान जनक सीट पर समीकरण बनाने के चक्कर मे कही अपने न रूठ जाए….

हाल में भाजपा का मंत्री पद व पार्टी छोड़कर सपा में जाने का मन बना चुके स्वामी प्रसाद ने छोड़ा बीजेपी योगी आदित्यनाथ के मंत्रिमंडल के सहयोगी स्वामी प्रसाद मौर्य और उनके साथ चार विधायकों ने मंगलवार को भाजपा का साथ छोड़ दिया है. माना जा रहा है कि स्वामी प्रसाद मौर्य अपने समर्थक विधायकों के साथ शुक्रवार को सपा का दामन थाम लेंगे. अखिलेश यादव के साथ उनकी मुलाकात भी हो चुकी हैं, जिसके बाद भी उन्होंने मंत्री पद और बीजेपी छोड़ने का फैसला किया है.
अब आइए जानते है, सपा के लिए सिरदर्दी बनी कई विधान सभाओं की सीटें कैसे अपने सिटिंग नेताओ को संतुस्ट कर पाएंगे अखिलेश आइए बात करते है क्रमशः विधान सभाओं की सीटो की ऊंचाहार सीट पर फंसा पेच
स्वामी प्रसाद मौर्य के सपा में आने से भले ही अखिलेश यादव को यूपी में मौर्य वोटों के फायदा मिलने की संभावना दिख रही हो, लेकिन कई सीटों पर सपा, दिग्गज नेताओं के लिए खतरे की घंटी है. स्वामी प्रसाद के एंट्री से रायबरेली की ऊंचाहार सीट से सपा के टिकट पर दो बार से जीत रहे पूर्व मंत्री मनोज पांडेय की चिंता बढ़ गई है. इसी सीट से स्वामी प्रसाद के बेटे उत्कृष्ट मौर्य भी दावेदार हैं. ऐसे में अखिलेश के सामने चुनौती है कि ऊंचाहार सीट से मनोज पांडेय और उत्कृष्ट मौर्य में किसे अपना प्रत्याशी बनाएं? सपा के सामने ऐसी ही चिंता रायबरेली जिले की हरचंद्रपुर सीट पर भी है, जहां से बीजेपी के पूर्व विधायक शिवगणेश लोधी के बेटे राहुल लोधी का बेटा सपा का दामन थाम लिया है. यहां से मुख्य दावेदार के रूप में पूर्व मंत्री व सपा नेता सुरेंद्र विक्रम सिंह उर्फ पंजाब सिंह थे. राहुल लोधी के सपा में आने से अखिलेश की चिंता बढ़ गई है कि सुरेंद्र विक्रम सिंह के टिकट दें या फिर ओबीसी चेहरे पर दांव लगाए. अकबरपुर सीट पर कौन लड़़ेगा
पूर्व मंत्री रामअचल राजभर ने पिछले दिनों बसपा छोड़कर सपा का दामन थामा है, जिसके चलते अकबरपुर सीट पर सपा से अभी तक चुनाव लड़ते रहे पूर्व मंत्री राममूर्ती वर्मा के लिए परेशानी खड़ी हो गई है. राममूर्ती वर्मा और रामअचल दोनों ही इसी सीट से चुनाव लड़ने की दावेदारी कर रहे हैं, जिससे अखिलेश यादव के लिए टेंशन खड़ी है. दोनों ही ओबीसी समाज के दिग्गज नेता माने जाते हैं.
ऐसे में माना जा रहा है कि राममूर्ती वर्मा को आजमगढ़ की संगड़ी सीट से सपा उतार सकती है. हालांकि, आजमगढ़ जिले में पहले से कई सीटों पर दलबदल करने वाले नेताओं ने अखिलेश यादव का सिरदर्द बढ़ा रखा है. बीजेपी छोड़कर सपा में आए पूर्व सांसद रामकांत यादव अपने दोनों बेटों को चुनाव लड़ाने की तैयारी में है तो मुबारकपुर सीट से दो बार के विधायक शाह आलम गुड्डू जमाली ने बसपा छोड़कर सपा का दामन थाम लिया है. मुबारकपुर सीट पर सपा के टिकट पर चुनाव लड़ने वाले अखिलेश यादव के लिए चिंता बढ़ गई है.
बदायूं में टिकट लेकर घमासान
बदायूं की बिल्सी सीट को अखिलेश यादव ने महान दल के प्रमुख केशव देव मौर्य के बड़े बेटे चंद्रप्रकाश सिंह मौर्य को चुनाव लड़ने की हरी झंडी दी है, लेकिन दो दिन पहले ही इसी सीट से बीजेपी के विधायक राधा कृष्ण शर्मा ने सपा का दामन थाम लिया है. ऐसे में अब दोनों के बीच सीट का पेच फंस गया है. बदायूं और शेखुपुरा सीट सहित जिले की अन्य दूसरी सीटों पर भी ऐसी मामला उलझा हुआ है, जहां से सलीम शेरवानी अपने बेटे और करीबी नेताओं के चुनाव लड़ाना चाहते हैं. वहीं, धर्मेंद्र यादव अपने करीबी नेताओं को चुनाव मैदान में उतारने की लिए पैरवी कर रहे हैं.
सहारनपुर जिले में सपा के टिकट*सहारनपुर जिले के दिग्गज नेता इमरान मसूद ने कांग्रेस छोड़कर सपा का दामन थामने का फैसला किया है. ऐसे में जिले की कई सीटों पर सियासी समीकरण गड़बड़ा गया है. इमरान मसूद के साथ कांग्रेस विधायक मसूद अख्तर भी सपा में शामिल होंगे, जो सहारनपुर देहात सीट से विधायक हैं. ऐसे में मसूद अख्तर सपा से भी चुनाव लड़ने की दावेदारी करेंगे, जिससे यहां से अभी तक चुनाव लड़ने का मन बना चुके पूर्व एमएलसी आशू मलिक के लिए चिंता बढ़ गई है. आशू मलिक को अखिलेश और मुलायम का करीबी माना जाता है. वहीं, बेहट सीट से दिल्ली जामा मस्जिद के इमाम अहमद बुखारी के दमाद उमर खान सपा के टिकट पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे थे. लेकिन, इमरान मसूद के सपा में आने से वो भी इसी सीट से दावेदार कर सकते हैं, जिसके उमर खान के लिए चिंता बढ़ गई है. ऐसे ही जिले की गंगोह और देवबंद सीट भी पेच फंसा हुआ है, जहां से दलबदल कर सपा में आने वाले नेताओं ने पुराने नेताओं के लिए परेशानी का सबब बन गए हैं.
*मेरठ की हस्तिनापुर में पेच*
मेरठ जिले की हस्तिनापुर सीट पर भी बसपा छोड़कर सपा में एंट्री करने वाले योगेश वर्मा के चलते मामला उलझा है. यहां से सपा के पूर्व विधायक प्रभु दयाल बाल्मिकी मुख्य दावेदार थे, लेकिन योगेश वर्मा और बसपा से सपा में आए प्रशांत चौधरी के दावेदारी से अखिलेश यादव के लिए चिंता बढ़ गई है. तीनों ही कद्दावर नेता हैं और यहां से विधायक रह चुके हैं. ऐसे में अब अखिलेश किसे टिकट देते हैं.
बलिया में उलझा मामला
बलिया जिले की बांसडीह से सपा के दिग्गज नेता रामगोविंद चौधरी विधायक हैं, जबकि 2017 में इसी सीट से ओम प्रकाश राजभर के बेटे अरविंद राजभर भी चुनाव लड़े थे. इस बार भी अरविंद राजभर चुनाव लड़ने की तैयारी में है और सपा प्रमुख ने भी चुनाव लड़ने की हरी झंडी दे दी है, लेकिन सीट पर अभी सस्पेंश बना हुआ है. बलिया की फेफना विधानसभा सीट पर भी अंबिका चौधरी के बसपा से सपा में वापसी कर गए हैं, जिससे संग्राम सिंह यादव के लिए परेशानी खड़ी हो गई है. संग्राम सपा प्रमुख के करीबी माने जाते हैं. पूर्वांचल के जौनपुर जिले के मुंगरा बादशाहपुर सीट पर भी पेच फंसा हुआ है, यहां से बसपा की विधायक रही सुषमा पटेल ने सपा का दामन थाम लिया है. वहीं, इसी सीट से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे पूर्व विधायक ज्वाला प्रसाद यादव के बेटे विशाल यादव भी तैयारी कर रहे थे, लेकिन सुषमा पटेल के आने के बाद सियासी समीकरण बिगड़ गए हैं. जौनपुर सदर सीट पर भी पेच फंसा हुआ, जहां से करीब तीन दर्जन नेताओं ने टिकट की दावेदारी की है. बसपा से तेज बहादुर मौर्य उर्फ पप्पू मौर्य छोडकर सपा में आए हैं, जो इस बार दावेदारी की है.
मऊ में मुख्तार ने बिगाड़ा खेल
मऊ विधानसभा सीट पर भी सपा के टिकट का मामला उलझा हुआ है. यह सीट ओम प्रकाश राजभर के खाते में चली गई है, जहां से मुख्तार अंसारी के चुनाव लड़ने की संभावना है. सपा के टिकट पर दो बार से चुनाव लड़ रहे अल्ताफ अंसारी के लिए काफी बड़ा झटका लगा है. ऐसे ही प्रतापगढ़ सीट पर भी सियासी समीकरण गड़बड़ा रहा है, जहां से अपना दल की अध्यक्ष कृष्णा पटेल और उनकी बेटी पल्लवी पटेल के चुनाव लड़ने की संभावना है. ऐसे में यहां से पूर्व नागेंद्र सिंह उर्फ मुन्ना यादव का सियासी समीकरण बिगड़ रहा है. इसी तरह से प्रतापगढ़ जिले की विश्वनाथगंज सीट से विधायक आरके वर्मा के अपना दल (एस) से सपा में आ गए हैं, जिसके चलते यहां से संजय पांडेय के के लिए चिंता बढ़ गई है. संजय पांडेय के पिता राजाराम पांडेय विधायक रह चुके हैं और सपा सरकार में मंत्री रहे हैं. ऐसे में ही पश्चिमी यूपी के तमाम विधानसभा सीटों पर आरएलडी से गठबंधन के चलते सपा के कई दावेदारों के सियासी समीकरण बिगड़ गए हैं. ऐसे में देखना होगा कि अखिलेश यादव कैसे टिकट वितरण करते हैं.