जुबां की कमान बजरंग बाण
मन्त्र, जप तप यह सभी हिंदूं संस्कृति में पुरातन काल से ही मुश्किलों से लड़ने के लिए औजार माने गए है ! वीरों में भी वीर श्री हनुमान जिनके अथाह बल की कल्पना करना भी मुश्किल है ऐसे में अगर एक सच्चा हनुमान भक्त मन से श्री हनुमान को न पुकारे यह संभव ही नहीं ! आज भी गोस्वामी तुलसी दास द्वारा रचित बजरंग बाण में इतनी शक्ति और ऊर्जा निहित है कि इसे पढ़ने के बाद आध्यात्मिक ऊर्जा के अलावा कई अन्य ऊर्जा से मन और तन ओतप्रोत हो जाता है !
विशेष कर मंगलवार और शनिवार को अवश्य पढ़ना चाहिए ! इसके अलावा अगर प्रत्येक दिन पढ़ने विशेष लाभ मिलता है !
बजरंग बाण पढ़ने से क्या क्या लाभ होते है !
डर भय आदि से मुक्ति
कार्य में विघ्न हटाने के लिए
संकट आने पर
मन स्थिर और शांत करने के लिए
रोजगार में बाधा होने पर
शिक्षा में ठहराव
आर्थिक लाभ
भौतिक सुख
तंत्र मंत्र बाधा न हो
किसी मुश्किल में पड़ने पर बजरंग बाण शुभ फल देता है ! इस बजरंग बाण में श्री हनुमान जी को संकट दूर करने के लिए शपथ तक दे दिया गया है !
भूत प्रेत पिशाच निसाचर।अगिन बेताल काल मारी मर
इन्हें मारु,तोहिं सपथ राम की।राखु नाथ मर्याद नाम की।
भगवान हनुमान जी तो श्री राम नाम से ही प्रसन्न हो जाते है तो श्री राम नाम के शपथ के बाद भक्त के संकट हरने न आये ये हो ही नहीं सकता !
आइये बजरंग बाण का पूरा लिरिक्स जानते और पढ़ते है जो कि इस प्रकार है
दोहा :
निश्चय प्रेम प्रतीति ते, बिनय करैं सनमान।
तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान॥
जय हनुमंत संत हितकारी। सुन लीजै प्रभु अरज हमारी॥
जन के काज बिलंब न कीजै। आतुर दौरि महा सुख दीजै॥
जैसे कूदि सिंधु महिपारा। सुरसा बदन पैठि बिस्तारा॥
आगे जाय लंकिनी रोका। मारेहु लात गई सुरलोका॥
जाय बिभीषन को सुख दीन्हा। सीता निरखि परमपद लीन्हा॥
बाग उजारि सिंधु महँ बोरा। अति आतुर जमकातर तोरा॥
अक्षय कुमार मारि संहारा। लूम लपेटि लंक को जारा॥
लाह समान लंक जरि गई। जय जय धुनि सुरपुर नभ भई॥
अब बिलंब केहि कारन स्वामी। कृपा करहु उर अंतरयामी॥
जय जय लखन प्रान के दाता। आतुर ह्वै दुख करहु निपाता॥
जै हनुमान जयति बल-सागर। सुर-समूह-समरथ भट-नागर॥
ॐ हनु हनु हनु हनुमंत हठीले। बैरिहि मारु बज्र की कीले॥
ॐ ह्नीं ह्नीं ह्नीं हनुमंत कपीसा। ॐ हुं हुं हुं हनु अरि उर सीसा॥
जय अंजनि कुमार बलवंता। शंकरसुवन बीर हनुमंता॥
बदन कराल काल-कुल-घालक। राम सहाय सदा प्रतिपालक॥
भूत, प्रेत, पिसाच निसाचर। अगिन बेताल काल मारी मर॥
इन्हें मारु, तोहि सपथ राम की। राखु नाथ मरजाद नाम की॥
सत्य होहु हरि सपथ पाइ कै। राम दूत धरु मारु धाइ कै॥
जय जय जय हनुमंत अगाधा। दुख पावत जन केहि अपराधा॥
पूजा जप तप नेम अचारा। नहिं जानत कछु दास तुम्हारा॥
बन उपबन मग गिरि गृह माहीं। तुम्हरे बल हौं डरपत नाहीं॥
जनकसुता हरि दास कहावौ। ताकी सपथ बिलंब न लावौ॥
जै जै जै धुनि होत अकासा। सुमिरत होय दुसह दुख नासा॥
चरन पकरि, कर जोरि मनावौं। यहि औसर अब केहि गोहरावौं॥
उठु, उठु, चलु, तोहि राम दुहाई। पायँ परौं, कर जोरि मनाई॥
ॐ चं चं चं चं चपल चलंता। ॐ हनु हनु हनु हनु हनुमंता॥
ॐ हं हं हाँक देत कपि चंचल। ॐ सं सं सहमि पराने खल-दल॥
अपने जन को तुरत उबारौ। सुमिरत होय आनंद हमारौ॥
यह बजरंग-बाण जेहि मारै। ताहि कहौ फिरि कवन उबारै॥
पाठ करै बजरंग-बाण की। हनुमत रक्षा करै प्रान की॥
यह बजरंग बाण जो जापैं। तासों भूत-प्रेत सब कापैं॥
धूप देय जो जपै हमेसा। ताके तन नहिं रहै कलेसा॥
दोहा :
उर प्रतीति दृढ़, सरन ह्वै, पाठ करै धरि ध्यान।
बाधा सब हर, करैं सब काम सफल हनुमान॥
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